April 11, 2025

आज के कवि : वसुधा कनुप्रिया

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paryas

ग़ज़ल का प्रयास

हम बुरे हैं या भले हैं
एक अपनी रह चले हैं

ख़्वाब देखे ढेर सारे
बेख़ुदी के सिलसिले हैं

उनको देखे बीती सदियाँ
उठ रहे अब वलवले हैं

दश्त सी दुनिया हुई थी
वो मिले तो गुल खिले हैं

पाक दामन कौन ठहरा
हर किसी के मश्ग़ले हैं

औरों को नीचे गिरा कर
कुछ यहाँ फूले-फले हैं

टाँग बातों में अड़ाना
आपके क्या मसअले हैं

ज़िन्दगी से है शिक़ायत
हम भी’ कितने बावले हैं

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