आज के कवि : वसुधा कनुप्रिया
ग़ज़ल का प्रयास
हम बुरे हैं या भले हैं
एक अपनी रह चले हैं
ख़्वाब देखे ढेर सारे
बेख़ुदी के सिलसिले हैं
उनको देखे बीती सदियाँ
उठ रहे अब वलवले हैं
दश्त सी दुनिया हुई थी
वो मिले तो गुल खिले हैं
पाक दामन कौन ठहरा
हर किसी के मश्ग़ले हैं
औरों को नीचे गिरा कर
कुछ यहाँ फूले-फले हैं
टाँग बातों में अड़ाना
आपके क्या मसअले हैं
ज़िन्दगी से है शिक़ायत
हम भी’ कितने बावले हैं