सूखती संवेदनाओं की दास्तां – “इमोजी”
वीरेन्द्र ‘ सरल ‘
आधुनिक हिंदी साहित्य में डॉ शैल चंद्रा एक सुपरिचित और प्रतिष्ठित नाम है। आये दिन प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में उनकी लघुकथाओं का प्रकाशन उनकी रचनात्मक सक्रियता और गहन चिंतन का प्रमाण है। चूंकि लेखिका स्वयं उच्च शिक्षित है, उच्च पद पर कार्यरत है और उच्च वर्गीय परिवार से है इसलिए उच्चवर्गीय सोसायटियों का उनका निकट से सम्बन्ध है। आधुनिकता की अंधी दौड़ और पाश्चात्य संस्कृति के दुष्प्रभाव से उच्चवर्गीय परिवार के अर्थकेन्द्रित और स्वकेन्द्रित जीवन शैली और व्यवहार में आये बदलाव को वह निकट से देखती है तथा शिद्दत से महसूस करती है। स्वाभाविक है कि एक चिंतनशील और सहृदय लेखिका होने के कारण ऐसे बदलाव और संवेदनहीनता से उनका मन आहत होता है और उनकी पीड़ा उनकी लेखनी के माध्यम से अभिव्यक्त होती है।
अब मन में यह विचार अवश्य आता है कि क्या किसी के लिखने मात्र से समाज, परिवार या देश- दुनिया में बदलाव आ जायेगा? दुनिया सुधर जाएगी? यदि ऐसा होता तो फिर दुनिया आज कुछ और ही होती। कोई भी लेखक इस मुगालते में नहीं रहता कि उसके लेखन से कोई क्रांतिकारी बदलाव आ जायेगा? फिर लेखक लिखता क्यों है, क्या मात्र आत्म संतुष्टि के लिए, सम्मान या पुरस्कार के लिए, पद या पैसे के लिए? नही।
यह सच है लेखक कोई क्रांतिकारी नहीं होता मगर वैचारिक क्रांति का सूत्रधार अवश्य होता है। वह अपनी लेखनी से समाज की चेतना को झकझोरता है। आत्मा को जागृत करता है, सोयी हुई संवेदना को झिझोड़कर जगाने का प्रयत्न करता है।
डॉ शैल चंद्रा जी का यह नवीनतम लघुकथा संग्रह इसी दिशा में किया गया एक सद्प्रयास है। जिसमें घर परिवार, नारी स्वातंत्र्य, शिक्षा, पर्यावरण का महत्व और नारी विमर्श पर केंद्रित लघुकथाओं को समाहित किया गया है। थर्ड क्लास, पुण्य फल, मदारी, हाईटेक संवेदना, सच्चा तर्पण, कांपता बसन्त, परख, लाइक एंड शेयर, उसकी आजादी, भूख , खुल गई आंखें इत्यादि शीर्षकों से विभिन्न मगर जरूरी मुद्दों पर लघु कथाएं इस संग्रह में संगृहीत है। चूंकि संग्रह की कथाएँ खुद ही लघु कथाएं हैं उन्हें और लघु कर यहाँ उद्धरित करने से पठन का आनंद कम हो जाएगा। आप सबके आनन्द में कमी न आए इसलिए उन्हें यहाँ उद्धरित नहीं कर रहा हूँ।
हम सब भली-भांति यह जानते हैं कि भाषा एवं लिपि के उद्भव एवं विकास के पहले मनुष्य अपने विचारों का संप्रेषण आंगिक या चित्र संकेतों के माध्यम से किया करते थे। भाषा और लिपि का उद्भव एवं विकास मनुष्य के विचारों की अभिव्यक्ति के लिए क्रांतिकारी कदम था। आज संसार में कई भाषाएं एवम लिपियाँ प्रचलन में है। लेकिन आज फिर अभिव्यक्ति के लिए मनुष्य के द्वारा चित्र संकेतों का प्रयोग होने लगा है, क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि दुनिया गोल है ?
यह वापस उसी आदिम युग में लौटने की प्रक्रिया तो नहीं है? यह प्रश्न सहज ही मन को मथता है। इंटरनेट के इस युग में अपने घर के कमरे के अलग -अलग कोने पर बैठे हुए पिता -पुत्र या माता-पुत्री , इमोजी के माध्यम से आपस में विचारों को व्यक्त करते हुए नजर आ जाते हैं । लेकिन वह बुजुर्ग क्या करें जिन्हें इंटरनेट के माध्यम से संकेत में संवाद करना नहीं आता?
संयुक्त परिवार की टूटन और अकेलेपन की घुटन पता नहीं हमारे समाज को किस और ले जाएगा? संवादहीनता की यह भयानक स्थिति निःसन्देह भयावह है। यह स्वाभाविक चिंता, संवेदनशील साहित्यकारों को होती है। समाज में घटने वाली एवं आए दिन समाचारों में छपने वाली मनुष्यता विरोधी घटनाओं को देखकर जब मन आहत होता है, तब मनुष्यता विरोधी प्रवृत्तियों को दूर कर एक स्वस्थ एवं संवेदनशील मानवीय समाज के निर्माण के लिए डॉ शैल चंद्रा जैसे रचनाकार की लेखनी से ‘ इमोजी ‘ लघुकथा संग्रह का सृजन होता है।
डॉ शैल चंद्रा अपनी लघु कथाओं के माध्यम से इस भयावह समय से समाज को सचेत करने का निरंतर प्रयत्न और लोकशिक्षण का अभूतपूर्व कार्य कर रही हैं।
पूर्व में भी उनकी लघु कथाओं के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । अभी वैभव प्रकाशन रायपुर से प्रकाशित उनकी नवीनतम कृति इमोजी प्रकशित हुई है जो संवादहीनता या चित्र संकेतों के माध्यम से संवाद करने की स्थिति पर गहरा कटाक्ष है। आज मनुष्य चांद पर कदम रख चुका है। दुनिया की सारी दूरियां नाप ली है। ग्लोबल गांव की कल्पना को साकार कर लिया है। लेकिन मनुष्य से मनुष्य के बीच के दिल की दूरियां इस तरह से बढ़ती जा रही है कि अपनों से संवाद करने का समय उसके पास में नहीं है। इसी चिंता की परिणिति है ‘ ‘ ‘इमोजी ‘। इमोजी लघु कथा संग्रह में लेखिका ने केवल इसी एक ही बात की ओर ही संकेत किया है, ऐसी बात नहीं है।
178 पृष्ठ के इस संग्रह में उनकी लगभग 118 लघु कथाएं संग्रहित है। जो विभिन्न विषयों पर केंद्रित है। उच्च गुणवत्तापूर्ण कागज पर उत्कृष्ट छपाई के साथ प्रस्तुत इस लघुकथा संग्रह का स्वागत हिंदी संसार के पाठकों द्वारा अवश्य होगा। पाठक इन लघुकथाओं में समाहित विचारों को आत्मसात अवश्य करेंगे, ऐसी मेरी मंगल कामना है।
नवीनतम कृति के लिए लेखिका को एवम उत्कृष्ट प्रकाशन हेतु प्रकाशक को हार्दिक बधाई।
वीरेंद्र सरल
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