रस्किन बॉन्ड
बासठ वर्ष की उम्र में यह आखिरी बार था जब दादी पेड़ पर चढ़ तो गईं, लेकिन उतर नहीं पाईं । तब परिवार के लोगों ने मिलकर उन्होंने उतारा। डॉक्टर को बुलाया तो उसने पूरे हफ़्ते बेड रेस्ट पर रहने को कहा। दादी के लिए यह समय नरक में बिताने जैसा था। जब उन्हें अपने शरीर में ताकत महसूस हुई तो वह बोली कि -“मैं यहां अब और नहीं लेट सकती”। बिना हिचकिचाहट, पूरे हक़ के साथ उन्होंने मेरे पिता को आदेश दिया कि मुझे एक ट्री टॉप हाउस बनवा दो।
दादी जीनियस थीं। वह किसी भी पेड़ पर चढ़ सकती थीं। जब लोग उन्हें समझाते कि अब इस उम्र में पेड़ों पर चढ़ती तुम अच्छी नहीं लगती हो । लोग हंसते हैं तुम्हारी इस हरकत पर ! तो रस्किन की दादी उल्टा जवाब देती- उम्र बढ़ने के साथ-साथ मेरी कुशलता भी तो बढ़ रही है , फिर मैं क्यों पेड़ पर चढ़ना छोड़ूं? ट्री टॉप हाउस’ का मतलब है पेड़ पर लकड़ी का घर। काफ़ी मशक्कत के बाद मेरे पिता ने आख़िरकार यह बना ही दिया। उसमें खिड़कियां थीं और दरवाज़े भी । अब हर रोज़ उनके ट्री टॉप हाउस पर मैं ट्रे में वाइन और दो गिलास लेकर जाता हूं । पूरे पेड़ पर अब उनका हक होने के भाव के साथ एक ख़ास अदा में वह महारानी की तरह अपने घर में बैठती हैं, और वाइन की चुस्कियां लेकर सेलिब्रेट करती हैं अपने सपनों का घर पा जाने को।
यह प्रसिद्ध लेखक रस्किन बॉन्ड की ‘ग्रैंड मां क्लांइब्स ए ट्री’ कविता का सार है। पढ़ने से पता चल जाता है कि रस्किन बॉन्ड की लेखन शैली कितनी सहज और सरल है। 20 वर्ष की उम्र में अपने पहले ही उपन्यास के ‘द रूम ऑन द रूफ’ के बाद वह बेस्ट सेलर लेखकों में शामिल हो गए थे। रस्किन बॉन्ड की दादी के घर कभी-कभी उनके भतीजे केन भी आया करते थे। वह निठल्ले किस्म के आदमी थे। उनके साथ रस्किन बॉन्ड की नोंक-झोंक और केन अंकल के अजीब कारनामों से भरी “क्रेजी टाइम्स विद अंकल केन” में लिखी हुई कहानियां आज भी बच्चों को बहुत पसंद आती हैं। बाल साहित्य में रस्किन बॉन्ड के योगदान के लिए उन्हें 1999 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया । 2014 में वह पद्म विभूषण से भी सम्मानित हुए हैं।
पहाड़ों से उनका लगाव इस कदर कि युवावस्था में अपने मूल वतन इंग्लैंड लौटने के बावजूद कुछ वर्षों में ही वह वापस मसूरी आ गए। अभी अगर पूछिए कि आप अगले जन्म में क्या बनना चाहते हैं तो वह कहते हैं “मैं तोता बनकर किसी पेड़ पर रहना चाहूंगा”। देहरादून में बिताए अपने पुराने समय को याद करते हुए लिखी ‘अवर ट्रीज स्टिल ग्रोज इन देहरा’ के लिए उन्हें प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी अवार्ड से भी नवाजा गया। यह किताब उनकी चौदह बेहतरीन कहानियों का संकलन है। 500 से अधिक कहानी, उपन्यास, लेख और कुछ कविताएं लिखने वाले रस्किन बॉन्ड 90 वर्ष की आयु में भी लेखन में सक्रिय हैं। मसूरी आने वाले साहित्य प्रेमी पर्यटक रस्किन बॉन्ड से मिलना नहीं भूलते। प्रत्येक शनिवार कैंब्रिज बुक डिपो में वह अभी भी बैठते हैं। आज़ हमारे इस प्रिय लेखक का जन्मदिन है। ईश्वर करें आप स्वस्थ रहें, दीर्घायु हों ,शतायु हों।