November 21, 2024

लोकगीत : गुइयाँ, ससरे में हमाई कदर न भई

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बाँके सैंया अपने गोरे तन पे यूँ इतराते
नंद जिठानी सँग मिलकर हम पर ताने बरसाते
हमरे जियरा की काहू को फिकर न भई

सखि री,अम्मा बाबूजी की यादें खूब सतावैं
बात-बात पर दोई अँखियन में ताल-कुँआ भर आवैं
अफसर भाई की तो कबहूँ खबर न भई

चिहुक ठिठोली संग हमाए ड्योढ़ी तक ही आए
हाट बजरिया बुँदिया तरकी बिसरें ना बिसराए
साँची बोलूँ, बालापन सी उमर न भई

रंजना

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