लोकपर्व, लोकचित्र, लोककथा…
हमारी संस्कृति में जितनी विशिष्टताएँ मिलती हैं उतनी शायद ही अन्यत्र किसी संस्कृति में मिलती हों। हम पंचतत्वों के साथ ही साथ, पशु- पक्षियों, पेड़- पौधों को पूजते भी हैं और उनसे आत्मीय संबंध भी स्थापित कर लेते हैं।
हमारा देश कृषि प्रधान देश है अत:जो भी कृषक के लिए लाभकारी होता है वह उसको देव मानकर पूजता है, चाहे वह चाँद , सूरज ,नदी , पहाड़ , बादल , अग्नि , पृथ्वी , पेड़ , पशु हो अथवा कोई भी अन्य क्यों नहीं हो । प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता बनी रहे इससे, बढ़कर और कुछ है भी नहीं। हर देने वाले को देव मानकर हम उनके अनुग्रहीत होते हैं ।
अब बात नागदेव की, नाग फसलों के लिए हानिकारक जीव-जंतुओं से खेतों की रक्षा करता है। शायद इसीलिए ही उसे क्षेत्रपाल भी कहा जाता है।
नाग पंचमी की एक लोककथा जो दादी और माँ सुनाती थीं ।अब न तो दादी हैं और न ही माँ , बस उनकी यादें और कथाएँ शेष हैं…
एक गाँव में एक किसान-किसानी अपने पुत्र – पुत्री के साथ रहते थे ।उनका परिवार बहुत खुशहाल था। खेती – बाड़ी से ही उनका जीवनयापन चलता था । किसान- किसानी शिव के परम भक्त थे। एक दिन किसान खेत जोत रहा था और किसानी उसके लिए दोपहर का खाना लेकर आई थी।उसके खेत में एक साँप अपने परिवार के साथ रहता था। हल चलाते समय, किसान से, अनजाने में साँप के दो बच्चे, हल के फल से बिन्ध गये और उनकी मृत्यु हो गई, अपने बच्चों की मृत्यु से साँप और साँपिन बहुत दुखी और बहुत क्रोधित हो उठे । यह देखकर किसान – किसानी भी बहुत दुखी हुए और मन ही मन अनजाने में हुई इस गलती की क्षमा माँगने लगे।
उसी रात साँप और साँपिन किसान के घर पहुंचे तथा निद्रामग्न किसान और उसके पुत्र को डस लिया, जिससे वे दोनों मूर्च्छित हो गये। सुबह किसानी और उसकी पुत्री ने उन्हें मृत जानकर विलाप शुरू कर दिया और भगवान शिव से प्रार्थना करने लगी कि उन्हें जीवित कर दें, भगवान शिव और माँ पार्वती साधारण राहगीर का वेश धारण कर, पानी पीने के बहाने किसानी के समक्ष उपस्थित हुए और उनसे विलाप का कारण पूछा। सारी बातें सुनकर उन्होंने किसानी को सांत्वना दी और कहा कि यदि तुम साँप और साँपिन की सेवा करोगे तो वे तुम्हारा उद्धार करेंगे। जब तक तुम साँप को हानि नहीं पहुंचाओगे वह भी तुम्हें हानि नहीं पहुंचाएगा, ऐसा कहकर वे वहाँ से चले गए।
उस रात किसानी और उसकी पुत्री बिना कुछ खाये-पिये, मन में शुभ की कामना करते हुए दीपक जलाकर प्रार्थना करने लगीं, ब्रह्म मुहूर्त में साँप और साँपिन फिर से उनके घर आये और किसान की पुत्री को डसने लगे, किसानी जागी हुई थी उसने, उनसे अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थना की।
साँप ने उसके पति एवम् पुत्र के शरीर से अपना सारा विष चूस लिया और वे दोनों पुन: जीवित हो उठे, उनका घर फिर से खुशियों से भर उठा।
उस दिन सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी थी।
… पारुल