स्त्री तब समर्पित हुई
पुरुष से कहा गया
जब तुम प्रेम करना
तो देखना प्रेयसी की
आँखों की गहराई
चाँद से चेहरे का आकार
होंठों का रंग , रंग की मिठास
तुम देखना कमर के बल
अंगो का उतार चढ़ाव
और सोलह श्रृंगार
और तब
” पुरूष प्रेमी हो गया ”
पुरुष को कहा गया ,
जब तुम करना प्रेम
किसी सम्पूर्ण स्त्री से
तो देखना ,
ह्रदय की कोमलता
अंतस का प्रेम
मन की दया
समाज की नैतिकता
सेवा भाव
पुरखों का ज्ञान
परिवार के संस्कार
लक्ष्मी सा ओज
शारदा सा ज्ञान
दुर्गा सा तेज
क्योंकि यही स्त्री का
सम्पूर्ण सम्रद्ध स्वरूप है
और तब
” पुरुष स्वामी हो गया ”
स्त्री से कहा गया जब
तुम प्रेम करना तो देखना…
कद काठी
रूप रंग बाँकपन
सोच , व्यवहार
समाज में स्थान
रुतवा
कुल
संस्कार
स्त्री मुस्कुराई ,
सारे मापदंडों के परे
स्त्री ने प्रथम चुना
आत्मसम्मान , फिर
ढूंढा स्त्री का सम्मान करता पुरुष
और स्त्री ,
” स्वयं समर्पित हो गयी ”
–निधि नित्या