ऐ लड़की
बरसों-बरस की यात्रा में क्या पाया लड़की?
स्वयं से चली
कितना पहुँची स्वयं तक
जान पाई
क्या चाहती है
क्यों चाहती है
कोई चाहना है भी या नहीं?
दिखा क्या कोई बोर्ड
लिखा हो जिस पर
“अतृप्ति की सीमा समाप्त”
और कितना समय लगेगा
ख़ुद को खोजने में
कब तक भटकेगी अपनी ही शिराओं में
ख़ुद से भी आज़ादी चाहिए होती है लड़की!
सुख से सुख उपजता है
दु:ख से दु:ख
कौन सा बीज बोया था
कि फूटता है सुख से भी दु:ख
अमरबेल की तरह फैल गए हैं जिसके जरासूत
औरों के दिए ज़ख़्मों का अंत है
आप लगाए ज़ख़्मों का अंत कहाँ लड़की
मन की मुट्ठी खोल,
झरने दे सब संताप
ग्लानि, पश्चाताप और प्रवंचनाओं की ढेरी से उठ
न धरती समाप्त हुई है
न आकाश
बाक़ी है अभी पाँव की दौड़
आहटें चीन्ह
द्वार पर ठिठका है आगत
विगत में न कुछ रहता है और न बहता है
प्राण की सहस्त्र धाराएँ हैं
बहने दे लड़की!
– पायल
(जन्मदिन वाली कविता)
बधाई संदेशों, शुभकामनाओं और प्रेम के लिए अंतस् से आभार