‘महल’ के 75 साल
1948 में एक हिल स्टेशन पर शूटिंग के लिए अशोक कुमार ठहरे हुए थे। उन्होंने एक रात एक कार में किसी महिला की लाश देखी थी जिसका सिर नहीं था। वे और ठीक से देख पाते इससे पहले उस महिला की लाश गायब हो गई। अशोक कुमार नजदीकी पुलिस स्टेशन में इसकी रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंचे तो बताया गया कि 14 साल पहले वहां एक दुर्घटना में एक औरत मारी गयी थी!
अशोक कुमार ने यह कहानी कमाल अमरोही को बताई और बॉम्बे टाकीज के बैनर तले इस कहानी को विस्तृत कर फ़िल्म बनाने की शुरुआत हुई। नायक के रोल में अशोक कुमार खुद थे। गीत लिखे के. नक्शब ने और संगीत दिया खेमचंद प्रकाश ने। खेमचंद प्रकाश इसमें तब की ख्यात गायिकाओं राजकुमारी और गौहर अम्बालेवाली से गवा रहे थे। फ़िल्म के सारे सातों गाने स्त्री आवाज में ही हैं। उन्होंने एक नई नई 19 साल की सिंगर को इसमें मौका दिया और उससे गवाया, ‘आएगा, आएगा, आएगा… आएगा आनेवाला… आएगा…।’ यह गीत कालजयी हुआ और गायिका का नाम था लता मंगेशकर।
अब एक परेशानी बाकी थी। ऐसी हॉरर फिल्म में नायिका का चरित्र कोई बड़ी एक्ट्रेस निभाने को तैयार न थी। ऐसे में एक 16 साल की सुंदर सी एक्ट्रेस को उन्होंने फिल्म में कामिनी की मुख्य भूमिका के लिए लिया जिसका नाम था मधुबाला। मधुबाला के हीरो अशोक कुमार की उम्र से उनके दोगुने से भी ज्यादा थी। फ़िल्म के विषय, बेमेल नायक नायिका और बॉम्बे टाकीज की फ्लॉप फिल्मों के क्रम के कारण इस फ़िल्म से भी लोगों को नुकसान की ही उम्मीद थी सो अशोक कुमार ने घाटा सहने के लिए निर्माता सावक वाचा के साथ सह निर्माता बनना स्वीकार कर लिया।
फ़िल्म 19 अक्टूबर 1949 को रिलीज हुई और तमाम आलोचनाओं के बावजूद उस दशक की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक बन गयी! यह बॉम्बे टॉकीज़ के इतिहास में सबसे बड़ी कमाई करनेवाली फ़िल्म भी बनी। फ़िल्म ‘महल’ तब 9 लाख में बनी थी और इसने 1 करोड़ 45 लाख कमाई की थी। इस सफलता ने दुनिया को दो सुपर स्टार दिए जो सिने इतिहास की अमिट पहचान के रूप में स्थापित हुई, पहली अनिंद्य सौंदर्य की मालकिन मधुबाला और दूसरी अजर अमर आवाज के रूप में लता मंगेशकर। निर्देशक कमाल अमरोही जिनकी यह पहली फ़िल्म थी, के साथ फ़िल्म के एडिटर बिमल रॉय भी बाद में हिंदी फिल्मों के महान ऐतिहासिक व्यक्तित्व बन गए।
‘महल’ को ब्रिटिश फ़िल्म इंस्टीट्यूट की ’10 बेहतरीन रोमांटिक हॉरर फ़िल्मों’ की सूची में और स्कूपव्हूप की ’14 बॉलीवुड हॉरर फ़िल्में जिन्हें आप अकेले नहीं देख सकते’ में सूचीबद्ध किया गया था। इस फ़िल्म ने भारत में हॉरर फिल्मों के द्वार खोल दिये। फ़िल्म की समीक्षाएं तब भी हुईं पर अभी ताजा समीक्षाओं में से एक समीक्षा गौरतलब है। लेखक विजय मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘बॉलीवुड सिनेमा : टेंपल ऑफ़ डिज़ायर’ में लिखा है – “यह फ़िल्म इसीलिए अंतिम उपलब्धि बनी हुई है क्योंकि इसमें समापन का अभाव है और इसकी संरचना में ही अस्पष्ट क्षण अंतर्निहित हैं। यह पुनर्जन्म की हिंदू कहानी का उपयोग करते हुए गॉथिक रूप की क्षमताओं का विस्तार करता है।” गॉथिक कहानी शैली और हॉरर कहानी में अंतर है। ‘महल’ वास्तव में गॉथिक शैली की कहानी है। हॉरर कहानी में हॉरर का दृश्य साधारण दृश्य में अचानक ही आता है जबकि गॉथिक में लगातार निराशा, तनाव, दुःख और भय का का वातावरण बना रहता है। इसके अलावा हॉरर में भूत होना जरूरी है पर गॉथिक में भूत हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते हैं।
यह फ़िल्म यू ट्यूब पर उपलब्ध है जिसे आप रिलीज की 75 वीं सालगिरह के अवसर पर देख सकते हैं। आज इस फ़िल्म से जुड़ा कोई भी जीवित नहीं होगा पर ‘महल’ की ‘कामिनी’ और ‘आएगा आनेवाला… ‘ की आवाज हमेशा जीवित रहेंगे।
– पीयूष कुमार / बागबाहरा