कितना कठिन है

ऋतुराज की प्रतीक्षा करना
बसंत कोई मौसम परिवर्तन नहीं
वह पावन सुगंध है
तुम्हारे ख़ुशरंग मन की
जिसे तुम बिखेर देते हो
अपने स्नेहिल शब्दों से मेरे मन में
जैसे फूट पड़ती है पीली सरसों
सुनहरे शरद में
जैसे मुड़ जाता है सूर्य की ओर
सूरजमुखी, पाकर सूरज का दर्श
उन्मुख हो जाती है मेरी भी समग्र चेतना
पाकर तुम्हारी वाणी की दिव्यता का स्पर्श
मेरे लिए तो हर उस रोज़
आता है कुसुमाकर
जब-जब तुम करते हो बातें
मुझसे जी भरकर
झरती है तुम्हारी हँसी वैसे ही
बातों-बातों में
झरता है जैसे हरसिंगार
चाँदनी रातों में
सच कहूँ तो
मैं बसंत का नहीं…
तुम्हारी आवाज़ का इंतज़ार करती हूँ
तुम्हारी कॉल का आना
मेरे लिए ऋतुराज का आना है!!
-अनिला राखेचा