“अविभाजित दुर्ग जिले का साहित्यिक इतिहास”

(मेरे संकलन से – अरुण कुमार निगम)
पं. दानेश्वर शर्मा का अध्यक्षीय भाषण :
दिनांक : 21 जून 1962
संदर्भ : दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन, पंचम अधिवेशन
स्थान : बालोद
श्रद्धेय विश्वनाथ वैशम्पायन जी, भाई झुमुक लाल भेंड़िया, साहित्य अनुरागी बंधुओं व बहनों !
आज इस पुनीत पर्व पर मैं सर्वप्रथम बालोद के उन साहित्यानुरागी बंधुओं को हृदय से धन्यवाद देता हूँ जिनके उत्साह व लगन के कारण यह स्थान साहित्य संगम का प्रयाग बन गया। हिंदी साहित्य के प्रति उनकी यह श्रद्धा इस क्षेत्र की प्रगतिशीलता का परिचायक है। जिले के भौगोलिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक व औद्योगिक महत्व का यह केंद्र अपने अन्तस्थल में संस्कृति के उस इतिहास को भी संजोए है जिसके प्रतीक रूप में गोंडवाना राज्य कालीन जिले के भग्नावशेष, नागवंशी राजाओं का मंदिर, देवसराय तालाब, मालीघोड़ी में कुकुर देव का मंदिर, बंजारी माता, बूढ़ा तालाब आदि आज भी विद्यमान हैं।
“सम्मेलन और साहित्य”
तांदुला के किनारे व प्रकृति की गोद में स्थित इस स्थान का अपना महत्व है। प्रकृति का एक स्वरूप हमारी आँखों के सामने है और दूसरा स्वरूप है हमारी अनुभूतियों में। पुरुष के भी दो स्वरूप हैं जिनमें पहला प्रकृति के साथ तादात्म्य में होकर जगत की सृष्टि करता है और दूसरा अनुभूतियों के साथ तादात्म्य होकर साहित्य का सृजन करता है। इसलिए कुछ विद्वानों ने साहित्य की परिभाषा की है – “जीवन की आलोचना”, किंतु जीवन की आलोचना मात्र ही साहित्य नहीं है। सागर के गर्भ में स्थित हर पत्थर मोती नहीं होता। आज के साहित्य का दायरा बढ़ चुका है। उसने जीवन का मूल्यांकन करना भी प्रारंभ कर दिया है। साहित्य सम्मेलनों में अब नई बातें होती हैं। आज का साहित्य समाज का केवल मनोरंजन नहीं करता और न साहित्य सम्मेलन भाषा का स्वरूप ही स्थित करते बैठा रहता है। अब तो हम विचार करते हैं जीवन जीवन की समस्याओं पर क्योंकि अब साहित्य समाज का दर्पण मात्र नहीं है, उसका मार्गदर्शक भी है। क्रांति विचारों में होने लगी है। पिस्तौल और गोली से खेलने वाला हाथ भी अब कलम और मस्तिष्क के द्वारा “विचार और समाचार” का संपादन करता है। यह युग की मांग है जिसे साहित्य ने देना स्वीकार किया है।
“हमारे गौरव”
इस जिले की उर्वरा भूमि में न केवल प्रादेशिक वरन अखिल भारतीय स्तर के साहित्यकारों को जन्म दिया है। श्रद्धेय डॉक्टर बलदेव प्रसाद मिश्र तथा डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी इस अंचल के हृदय के दो फेफड़े हैं, जिनका स्पंदन ही हमारा जीवन है। दुर्ग के पुराने साहित्यकारों में स्वर्गीय भोवासिंह बघेल, कन्हई साव,रघुवर दयाल, द्वारका प्रसाद रायजादा, दशरथलाल व भीष्मलाल मिश्र का नाम श्रद्धापूर्वक किया जाता है। आधुनिक प्रौढ़ साहित्यकारों में श्री द्वारकानाथ तिवारी, घनश्याम सिंह गुप्त, सदाराम साव, भूरमल पाटनी, विट्ठलराव कांगले, रामचरण गुप्ता तथा रामप्रसाद कसार की सेवाएँ सदा स्मरणीय रहेंगी। श्री राधिका रमण दुबे का “शबरी महाकाव्य” अद्वितीय ग्रंथ है जो अप्रकाशित है। श्री पीला लाल चिनौरिया (संत श्यामा चरण सिंह ), शिशुपाल सिंह यादव उदय प्रसाद “उदय” व पतिराम साव ने तो दुर्ग में साहित्य की ज्योति ही जलाई है। श्री उदयराम विधानसभा सदस्य तथा पंडित गया प्रसाद मौन साधक हैं। स्वर्गीय लक्ष्मण प्रसाद यादव गयन्दलाल बँछोर को हम भूल कर भी नहीं भूल सकते। जिले के जिन अन्य साहित्यकारों ने माँ भारती के साहित्य भंडार को अक्षय बनाया है उनमें प्रसिद्ध हैं – कवर्धा क्षेत्र के खेमकरण बाबू तथा मास्टर लल्लूराम, खैरागढ़ के गजराज बाबू, उमराव बख्शी तथा अन्य चारण कवि, राजनांदगाँव के दाऊ कृष्ण किशोर दास, रानी सूर्यमुखी बाई, शीतल प्रसाद, परमानंद, डॉ. गोविंद प्रसाद शर्मा, वसंतलाल, कामता प्रसाद सागरीय तथा राजूलाल, छुईखदान के राजा लक्ष्मण दास, पंडित कुशल राम, सियाराम, धानूलाल, भीमसेन, दीनदयाल तथा पंडित गंगाप्रसाद अग्निहोत्री तथा बालोद क्षेत्र में चौकी के श्री ख्वाजा हुसैन, डौंडीलोहारा के ऊधव साव और ठाकुर ज्योति सिंह, लाटाबोड़ के श्री जमुना प्रसाद यादव ने हिन्दी व छत्तीसगढ़ी में तथा डोंगरगढ़ के उर्दू शायर श्री दौर में छत्तीसगढ़ी में ललित रचनाएँ की हैं।
“जगमगाते नक्षत्र ”
जिले की कीर्ति-परंपरा को बनाए रखने में ही नहीं वरन उसे दिग्व्यापी बनाने में तथा युग को गति देने में भी इस अंचल के तरुण साहित्यकारों का योगदान इतिहास की धारा को मोड़ रहा है। सर्व श्री केदारनाथ झा “चंद्र”, नंदूलाल चोटिया, हनुमन्त नायडू, गंगा प्रसाद शुक्ल तथा कोदूराम “दलित” की कविताओं की छाप हर जगह पर चुकी है। श्री वीरेंद्रलाल मिश्र, ब्रजभूषण लाल पांडे, निरंजन लाल गुप्ता, रमाशंकर तिवारी व राधेश्याम “श्याम” कवि और लेखक हैं। श्री कपिलनाथ भट्ट ने “थर्मामीटर”, “ब्रह्म” तथा “भोकवा” के नाम से जीवन के हर क्षेत्र को स्पर्श किया है। राजनांदगाँव के कुंजबिहारी चौबे तथा दुर्ग के गुलाबचंद पहाड़िया व मदनलाल गुप्त की असामयिक मृत्यु से हमने बहुत कुछ खो दिया। जिले के भूतपूर्व जनसंपर्क अधिकारी श्री ब्रजभूषण सिंह “आदर्श” ने “छत्तीसगढ़ के साहित्यकार” परिचय ग्रंथ लिखा। धमधा के श्री बंगालीप्रसाद ताम्रकार, बंगाली प्रसादी स्वर्णकार तथा डॉ.खान साहब तथा बालोद के श्री सलीम अहमद जख्मी, झाडूराम सुखदेवे कौमार्य तथा हास्य रस के कवि मुंशी फरीद खां की काव्य-रचना ऊँचे स्तर की होती हैं। “तार सप्तक” के कवि श्री मुक्तिबोध, संप्रति दिग्विजय महाविद्यालय राजनांदगाँव में प्राध्यापक हैं। श्रीमती मनोरमा पाटणकर, विद्यावती मालविका तथा विद्यावती खंडेलवाल इस जिले की महिला साहित्यकार हैं जिन्होंने अच्छी रचनाओं का सृजन किया है।
“नए दीप-नई ज्योति”
भविष्य के सौर्य जगत पर कुछ नए नक्षत्र उदय हो रहे हैं। श्री रघुवीर अग्रवाल “पथिक”, ज्ञानसिंह ठाकुर, राजेंद्र श्रीवास्तव, शंकर लाल गुप्ता, जनक दुर्गवी, अंबिका मिश्रा, शंकर “साथी”, अरुण कुमार यादव, शिव कुमार यादव, डॉ. बलराम वर्मा, गयासुद्दीन अंसारी तथा मोहनलाल जैन की रचनाओं में युग की धड़कन है। कुछ दिनों पूर्व प्रकाशित “खिलते फूल” कविता संग्रह में रमेशदत्त नगरिया, कु. शची दुबे, कमलाकांत, गिरधर शर्मा, पुष्पलता झा, अमनसिंह चंद्राकर, मनमोहन श्रीवास्तव तथा शांति गंधर्व की कविताओं का प्रकाशन हुआ है। श्री रावलमल जैन राष्ट्रभाषा प्रचारक हैं तथा छात्र एवं कवि भी। जिले की अन्य प्रतिभाओं में वल्लभ थानवी, अनंत कुमार चौहान, चतुर्भुज देवांगन, नत्थू कोल्हटकर, भंवरीलाल टावरी, गणेश द्विवेदी, मानिक चंद सोनी, शंकरलाल तिवारी तथा लज्जाशंकर तिवारी से भी भविष्य को बहुत आशा है।
“पत्र, पत्रकार व प्रकाशन”
पत्रकारिता के क्षेत्र में यह जिला कभी पीछे नहीं रहा; किंतु बहुत से पत्र कुछ दिनों बाद बंद हो गए। सवेरा, जिंदगी, जनपथ, चेतावनी, प्रेरणा, नवसंदेश, आग, दुर्ग टाइम्स आदि का प्रकाशन नहीं हो पा रहा है। अभी जिले में जनतंत्र, ज्वालामुखी तथा भिलाई-समाचार नियमित पत्र हैं। साहू-संदेश मासिक पत्रिका दुर्ग से प्रकाशित होती है। साहित्य प्रकाशन की समस्या अन्य स्थानों के समान हमारे भी जिले में है।फलत: अधिकांश साहित्यकारों की रचनाएँ अप्रकाशित हैं। सहकारी योजना से प्रकाशन के लिए हमें यत्नशील होना चाहिए।
“कृतज्ञता ज्ञापन”
अंत में मैं उन समस्त बंधुओं का आभार मानता हूँ जिन्होंने मुझे इस अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया। श्री झुमुकलाल भेंड़िया, डॉ. पांडे तथा स्वागत समिति के सभी सदस्यों का भी कृतज्ञ हूँ और इस भव्य आयोजन के लिए उन्हें हृदय से धन्यवाद देता हूँ। इस जिले के साहित्यकारों के मस्तिष्क में युग की चेतना है और उनके साहित्य अनुभूतियों की जीती जागती तस्वीर। मेरा विश्वास है कि आज का यह सम्मेलन इस क्षेत्र की नई प्रतिभाओं के विकास में सहायक होगा, सम्मेलन में एकत्रित विद्वान साहित्यकारों की वाणी यहाँ के वायुमंडल में गूंजती रहेगी जिसे सुनकर कालांतर में कभी कोई प्रेमचंद, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रसाद या निराला अवश्य जागेगा। ऊषा के अनन्तर सूर्योदय का होना स्वाभाविक है।
“जय हिन्दी, जय देवनागरी”
दानेश्वर शर्मा
अध्यक्ष
दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन,
पंचम अधिवेशन
बालोद
दिनांक – 21 जून 1962
(मेरे संकलन से – अरुण कुमार निगम)