November 21, 2024

हिंदी पत्रकारिता में आवश्यक है विज्ञान की लोकप्रियता

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30 मई राष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष लेख

किसी भी विषय विशेष की लोकप्रियता मेंपत्रकारिता का अपना योगदान होता है। आमतौर पर पत्रकारिता समाचार पत्रों औरपत्रिकाओं से जुड़ा व्यवसाय माना जाता है।इसमें समाचार संकलन, लेखन, संपादन, प्रस्तुतीकरण, वितरण आदि कार्य किए जाते हैं।वर्तमान तकनीकी युग में पत्रकारिता के माध्यम समाचार पत्रों और पत्रिकाओं से कहीं आगे बढ़कर रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता, सोशल मीडिया, इंटरनेट आदि में समाहित हो गए हैं। पत्रकारिता आज इन समस्त वैज्ञानिक संसाधनों द्वारा अपने उद्देश्य को पूरा करने में बेहद सफल हो रही है। लेकिन जिस विज्ञान ने उसे लोकप्रियता के चरम पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उसी विज्ञान को विषय के तौर पर पत्रकारिता में उतना स्थान नहीं मिल सका है कि उसे लोकप्रिय होने की श्रेणी में रखा जा सके। विशेषतौर पर हिंदी पत्रकारिता में तो विज्ञान विषय संबंधी जानकारियों को लोग अधिकतर नापसंद ही करते हैं।
यह अवश्य है कि पिछले लगभग डेढ़ साल से कोरोना महामारी के कहर के कारण उससे संबंधित वैज्ञानिक तथ्यों के प्रति लोगों की जागरुकता में वृद्धि देखने को मिली है। कोरोना वेक्सीन, चिकित्सा, वायरस, औषधीय पौधे, दवाइयां और स्वच्छता से जुड़े विज्ञान ने लोकप्रियता की ओर कदम बढ़ाए हैं।लेकिन फिर भी अन्य विज्ञान विषयक जानकारियों के प्रति लोगों की उदासीनता को नकारा नहीं जा सकता है। भारतीय हिंदी पत्रकारिता के परिपेक्ष्य में देखा जाए, तो लोगों के विश्वास के मानदण्डों पर हीपत्रकारिता की विश्वसनीयता टिकी है। मीडिया, लोकप्रियता, लोग और विश्वास इन सभी के मध्य घूमते हैं, वे विषय जिन पर विमर्श होते हैं और लोग राय बनाते हैं। भारतीय हिंदी पत्रकारिता के लोकप्रिय विषय प्रायः राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज, संस्कृति एवं सामयिक मुद्दे होते हैं। यही कारण है कि भारतीय लोगों के बीच राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और मनोरंजन के विषय सर्वलोकप्रिय हैं। हिंदी पत्रकारिता से जुड़े संपादक और लेखकगण मानते हैं, लोग यही पसंद करते हैं, जबकि लोग कहते हैं कि समाचारों में उन्हें यही पढ़ने सुनने को मिलता है। अतः विषयों की प्रासंगिकता और लोकप्रियता के निर्धारण में आम लोगों से कहीं अधिक पत्रकारिता और उससे जुड़े लोगों का उत्तरदायित्व बनता है।
भारत में जहां एक ओर विविध भाषाओं में 70,000 से अधिक समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं, तो वहीं दूसरी ओर पिछले 15-20 वर्षों में लगभग 700 उपग्रह चैनेलों के माध्यम से इलेक्ट्रोनिक पत्रकारिता ने शहरीऔर ग्रामीण क्षेत्रों के घर घर तक सूचनाएं पहुँचाई हैं। भारत के कम से कम 80 प्रतिशत परिवारों के पास अपने टेलीविजन सेट हैं और मेट्रो शहरों में रहने वाले दो तिहाई लोगों ने अपने घरों में केबल कनेक्शन लगा रखे हैं। इसके साथ ही शहर से दूर-दराज के क्षेत्रों में भी लगातार डीटीएच-डायरेक्ट टु होम सर्विस का विस्तार हो रहा है। इस तरह विकसित हो रहे पत्रकारिता के स्वरुपों से लोगों को लगातार कई विषयों पर जानकारियां मिल रही हैं।
लेकिन जब विज्ञान विषय की बात आती है, तो भारतीय पत्रकारिता में विशेषतौर पर हिंदी के समाचार पत्रोंऔर चैनलों में विज्ञान संबंधी सूचनाएं और समाचार बेहद नगण्य ही दिखाई सुनाई देते हैं। यूं भी भारत में विज्ञान को लेकर कठिन विषय होने की अवधारणा बरसों से चली आ रही है। वैज्ञानिक सुख सुविधाओं जैसे घरेलू काम की वस्तुओं से लेकर कम्प्यूटर, मोबाइल, वाहनों आदि का उपभोग करना तो लोग पसंद करते हैं, लेकिन विषय के तौर पर विज्ञान में रुचि से वे अक्सर किनारा ही करते हैं।यही कारण है कि विज्ञान कभी लोकप्रिय विषय नहीं बन सका है। विज्ञान का लोकप्रिय स्वरुप तभी उभर सकता है जब विज्ञान लेखक और वैज्ञानिक विज्ञान की जानकारियों को कुछ इस तरह प्रस्तुत करें, जो साधारण यानी ग़ैर-वैज्ञानिक लोगों की समझ में आये और उन्हें वह रोचक भी लगे।
देश में हिंदी बोलने और समझने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक है, इसलिए हिंदी पत्रकारिता के माध्यम से विज्ञान को लोकप्रिय बनाना ज्यादा कारगर हो सकता है।विज्ञान मानव अस्तित्व के कई पहलुओं को प्रभावित करता है। विज्ञान के क्षेत्रों जैसे चिकित्सा, प्रौद्योगिकी, खगोल विज्ञान आदि से जुड़ीं नई-नई खोजों से सभी लोग प्रभावित और आकर्षित होते हैं और उनके बारे में अपनी भाषा में अधिक से अधिक जानने के लिए उत्साहित भी रहते हैं। लेकिन भारत में विज्ञान लेखन संस्थानों और प्रयोगशालाओं की सीमाओं में रिसर्च पेपरों के रुप में अधिक लिखा जाता है, जिसका आम लोगों से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं होता। विषयों को लोगों से जोड़ने वाली हिंदी पत्रकारिताभी इन संस्थानों के बहुत अधिक निकट नहीं है और उसके लिए हिंदी में सार्थक विज्ञान लेखन करने वाले भी इतने नहीं हैं कि खोजों और अविष्कारों के परिणाम लोकप्रियता के वृत्तों में भर सकें। बल्कि विज्ञान लेखन ने पत्रकारिता को ऐसी परिधि में बांध रखा है, जिसके केंद्र में विशुद्ध विज्ञान है और परिधि के बाहर खड़ी लोकप्रियता विज्ञान को कभी-कभार छनकर आई खबरों के रुप में बस मुहर लगाती है।परिधि पर खड़ीहिंदी पत्रकारिता ही विज्ञान को लोकप्रियता दिला सकती है।हिंदी पत्रकारिता वैज्ञानिक संस्थानों के साथ समन्वय स्थापित करके विज्ञान के अनुसंधानों का लाभ अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा सकती है। यही आज की जरुरत भी है।
डॉ. शुभ्रता मिश्रा
वास्को-द-गामा, गोवा
shubhrataravi@gmail.com
मोबाइल 8975245042

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