(यह कविता उन सभी लोगों को समर्पित है जो अपने प्रिय से दूर आखरी साँसें गिन रहे हैं और अपने प्रिय की एक झलक पाना चाहते हैं)
आख़िरी गीत
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आख़िरी गीत.. मुहब्बत का..
गुनगुना तो चलूँ।
अंधेरा छा रहा है.. दीया लड़खड़ा रहा है..
झलक मिल जाए तुम्हारी तो चलूँ।
दृगों के कोर तक छलक आए हो तुम।
मोती बन आँख से झड़ जाओ तो चलूँ।
धड़कनें तेज हैं
घबराये ये दिल..
थम के कुछ चैन पा जायें
तो चलूँ।
अब के बिछड़े फिर मिले के न मिलें..
आँख भर देख लूँ तुमको तो चलूँ।
आखिरी साँस अटकी है..
रूह इस देह में अटकी है…
तुम इशारा करो..
तो चलूँ।
आखिरी गीत मुहब्बत का गुनगुना लूँ तो चलूँ।
निमिषा सिंघल