अपना दीपक बनकर जलना
मीलों मील अकेले चलना
अपना दीपक बनकर जलना
सूरज की तो फ़ितरत है ये
नित्य नया हो, उगना ढलना
बुझे बुझे अरमानों में तुम
सपना बनकर रोज टहलना
चालाकों की यही अदा है
हतप्रभ होना, आँखें मलना
जब तक तेल रहे प्राणों में
अंधियारों को जमकर दलना
चाहे कोई कुछ भी कर ले
अपने वादों से मत टलना
सच को सच की तरह देखना
खुद की छाया को मत छलना
सतीश कुमार सिंह