काश तुम समझ जाते
हाँ..मैं भी कह देती
अपने दिल की बात
जो तुम सुन लेते
तो अच्छा होता
जुबा़ से कह नहीं पाऊँगी कभी
आँखों में लिखे
अफ़साने पढ़ लेते
तो अच्छा होता
वो कलम कहाँ से लाऊँ
जो जज़्बात बया करते है
वो कोरा ख़त ही सही, देख समझ लेते
तो अच्छा होता
कैसै नज़ाकत से रिझाते है
अपने महबूब को
मुझे आता नहीं,शर्मो हया का परदा है
जो गिराया जाता नहीं
हाँ.. राज़ बहुत ये गहरा है
तुम डूब के इसमें
ये परदा उठाते
तो अच्छा होता
तुम आकर मेरे ख्वाब़ो ख्यालो में
यू सताए जाते हो क्यों…?
हकीकत में करीब आकर,ये ज़ज्बा दिखाते
तो अच्छा होता
मेरी हर बात,मेरे हर ख्वाब़ में
मौजुदगी है,तुम्हारी
गर मेरी ज़िंदगी में भी शामिल हो जाते
तो अच्छा होता
मैं तो तुम्हारी हो चुकी हूँ..।
काश… तुम भी मेरे हो जाते
तो अच्छा होता
मैं न कहती और तुम समझ जाते
तो अच्छा होता ..।
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नाम-दिलशाद सैफी
रायपुर,छत्तीसगढ़