November 21, 2024

5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष लेख : पारिस्थितिक तंत्रों के पुनर्सृजन का उत्तरदायित्व

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डॉ. शुभ्रता मिश्रा
वास्को-द-गामा, गोवा
shubhrataravi@gmail.com
मोबाइल 8975245042

इस साल संयुक्त राष्ट्र ने 5 जून 2021 को मनाए जा रहे विश्व पर्यावरण दिवस का मूल विषय पारिस्थितिकी तंत्र का पुनर्सृजन निर्धारित किया है। पुनर्सृजन की आवश्यकता तब महसूस की जाती है, जब या तो मूलतत्व विलुप्त हो गया हो अथवा समाप्ति की ओर तेजी से बढ़ रहा हो। इस दृष्टिकोण से सोचा जाए तो आज हमारे पर्यावरण का सबसे महत्वपूर्ण घटक पारिस्थितिकी तंत्र विलुप्त या समाप्ति की ओर अग्रसर तो नहीं हुआ है, लेकिन यदि वर्तमान गति से उसका दोहन होता रहा, तो उन स्थितियों में पहुंचना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं रह जाएगी। अब प्रश्न यह है कि यह पारिस्थितिकी तंत्र है क्या? वास्तव में संपूर्ण पृथ्वी ही अपनेआप में ऊर्जा, जैविक तथा अजैविकतीन मूल संघटकों से मिलकरबना एक विशाल पारिस्थितिक तंत्र है। इस पारिस्थितिकी तंत्र की ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत सूर्य है।
पारिस्थितिक तंत्र के जैविक घटकों में स्वपोषी घटक या उत्पादक अर्थात् हरे पौधे तथा इन पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से निर्भर करने वाले परपोषित उपभोक्ता घटकजैसे शाकाहारी, मांसाहारी और सर्वाहारी जीव आते हैं। इनके अलावा अपघटक सूक्ष्मजीव जैसे जीवाणु,कवकआदि भी इसमें शामिल हैं। अजैविक घटकों के अंतर्गत पर्यावरण में उपस्थित सभी निर्जीव कारक जैसे वायु, प्रकाश, ताप, वर्षा, कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थआते हैं।पारिस्थितिकी तंत्र के इन सभी घटकों के बल पर हीपृथ्वी के समस्त छोटे-बड़े जीव-जन्तु, पादप समुदायऔर मनुष्य अपनेअपने आवासों एवं पोषण संबंधी प्रबंध कर पाते हैं। वहीं पृथ्वी के विविध प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र जैसे वन, पर्वत, मरुस्थल, झील, तालाब, पोखर,समुद्र, महासागर, खाड़ी आदि पर्यावरणीय सन्तुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सभी प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र एकल रूप में और आपस में भी अंतर्क्रियाएं करते हुए एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं।
लेकिन आज विचारणीय विषय यह है कि मनुष्य ने सदियों से इन समस्त पारिस्थितिक तंत्रों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया है। मनुष्य ने अपनी सुख सुविधाओं के लिए जीवाश्म ईंधनों के अतिदोहन से उस प्राणवायु को ही प्रदूषित कर लिया है, जिसमें उसे सांस लेकर जीवित रहना है। औद्योगिक क्रांति के बाद सेजीवाश्म ईंधन के दहन पर मानव की निर्भरता ने वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड और ओजोन की सांद्रता, नाइट्रस ऑक्साइड एवं मीथेन जैसी अन्य शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जनको बढ़ाया है। मानव ने उस मिट्टी और जल की गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ किया है, जिससे उसका पोषण और स्वास्थ्य जुड़ा है। कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए रासायनिक उर्वरकों के उपयोग ने मिट्टी के आवश्यक पोषक तत्वों को कम कर दिया है। ओद्योगिक अपशिष्टों के जलस्त्रोतों में अंधाधुंध प्रवाह ने जल जैसी जीवन की आधारभूत आवश्यकता को भी प्रदूषित कर दिया है।
पिछली कुछ शताब्दियों से क्रमशः जैसे-जैसे मानव आबादी बढ़ी है, सभी के लिए आवास और भरण पोषण के लिए धरती और भोजन की आवश्यक मात्रा में भी वृद्धि हुई है। बढ़ती आबादी को समायोजित करने के लिए मनुष्य ने पारिस्थितिकी तंत्र की प्राकृतिकता को बदलना शुरु कर दिया। यहां तक कि उसने उन पादप समुदायों और जीवजंतुओं के प्रकार और वितरण को भी बदलने में संकोच नहीं किया, जिनके बल पर वह अपनी आजीविका के साधन जुटा पाता है। इसका असर यह हो रहा है कि पृथ्वी के विभिन्न निरीह जीवों, पक्षियों, मछलियों, स्तनधारियों और पादपों को अपने अस्तित्व को बचा पाना मुश्किल हो रहा है। एक ओर मनुष्य की आबादी जनसंख्या विस्फोट की ओर बढ़ रही है, वहीं प्रकृति के शेष पारिस्थितिक तंत्रों के जीवों की आबादी में निरंतर कमी आती जा रही है।
पारिस्थितिक तंत्रों पर मानवजनित गतिविधियों के ये प्रभाव भविष्य मेंन्यूनतम से लेकर विनाशकारी तक हो सकते हैं।आज आवश्यकता इस बात की है कि पूरी दुनिया को पर्यावरण के अनुकूल सौर, पवन, जल जैसे अक्षय ऊर्जा संसाधनों के सतत उपयोग पर ध्यान देना होगा। बढ़ते वैश्विक औद्योगिकीकरण से उपजे अपशिष्टों के निपटान के लिए नदियों जैसे पारिस्थितिक तंत्र को प्रदूषित होने से बचाना भी बेहद जरुरी हो गया है। जंगलों के पारिस्थितिक तंत्र को बिगाड़ने वाली अंधाधुंध कटाई हो या उनमें कृत्रिम रुप से भड़काए गए दावानल हों, उन पर रोक लगने की भी सख्त जरुरत है। महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषणों से लेकर उनमें समाहित जैव संपदा के अतिदोहन से उपजी लवणीय जल पारिस्थितिकी की अस्वस्थता का इलाज करना ही होगा।
इन सभी पारिस्थितिकीय बदलती परिस्थितियों के प्रति लोगों में जागरुकता लाने के कारण ही संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनैप) के अंतर्गत विश्व पर्यावरण दिवस 2021को पारिस्थितिक तंत्रों के क्षरण को रोकने और उनको फिर से हरा भरा करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। इस साल विश्व पर्यावरण दिवस 2021 की मेजबानी का उत्तरदायित्व हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान को सौंपा गया है।

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