April 8, 2025
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मैं छत्तीसगढ़ के जिस इलाके (खैरागढ़ छुईखदान गंडई) से आता हूँ, वह मैकल पर्वत श्रेणी का पूर्वी भाग है । राजनांदगांव-कवर्धा रोड के पश्चिम में मैकल पर्वत श्रेणी है और उसके पूर्व से मैदानी इलाका शुरू हो जाता है । यहाँ की काली मिट्टी बेहद उपजाऊ है जो ओन्हारी (रबी) फ़सल के लिए अनुकूल है । इस क्षेत्र में पहले चना की फ़सल खूब ली जाती थी और वैसे ही पैदावार भी होता था । यहाँ चना की एक देसी किस्म ‘सुंदरी’ एक बड़े रकबे में बोई जाती थी, जो खाने में बहुत स्वादिष्ट थी । मार्केट में हाईब्रिड बीज के आने से यह किस्म विलुप्त हो गई ।
यहाँ टमाटर की फ़सल भी खूब होती थी और आज भी होती है । सहसपुर लोहारा से साजा तक, साजा से धमधा तक, धमधा से जालबाँधा-घुमका और ठेलकडीह तक और वहाँ से मैकल श्रेणी का पाद प्रदेश अर्थात खैरागढ़ छुईखदान गंडई का यह इलाका टमाटर उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है । लेकिन यहाँ टमाटर का जितना उत्पादन होता है उसका वास्तविक लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है । एक तो टमाटर का भाव नहीं रहता । आज लगभग चार माह हो गये, मंडी में उसकी कीमत लगभग 3-4 रुपये किलो से ज्यादा नहीं है । इसकी कीमत कभी-कभी 1-2 रूपये किलो तक भी पहुँच जाती है, जिससे किसान खेत से टमाटर तोड़ने की मजदूरी और ट्रांसपोर्ट का खर्चा भी नहीं निकाल पाते । ऐसे में वे टमाटर को तोड़कर सड़क किनारे फेंक देते हैं या टमाटर तोड़ना ही बंद कर देते हैं । मुझे अपने स्कूल के दिनों की याद आती है, जब हम साइकिल से स्कूल जाते थे, तो दिसम्बर-जनवरी माह में सड़क किनारे टमाटरों के ढेर होते थे और हम उन टमाटरों के ऊपर जान-बूझकर साइकिल चढ़ा देते थे । यह स्थिति आज भी कायम है । सब्जियों की मँहगाई पर उछल-कूद मचाने वाले टीवी पत्रकार ऐसी ख़बरों को दिखाना ज़रूरी नहीं समझते । किसानों के मुनाफ़े का ज्यादातर हिस्सा बीज, रासायनिक उर्वरक, पेस्टीसाइड इत्यादि कृषि लागतों पर चला जाता है । यहाँ की मिट्टी की सारी समृद्धि किसानों तक पहुँच नहीं पाती, कहीं और चली जाती है ।
मैंने इस विषय पर कुछ लिखने की छोटी-सी कोशिश की है । यह विषय मुझे बचपन से मथता रहा है । किसान, टमाटर, मंडी और तराजू के बिम्ब बालपन की मेरी स्मृतियों में संचित हैं । दो छोटी-छोटी कविताएँ प्रस्तुत है –

बाज़ार में किसान -1
…………………

बाज़ार के बीचो-बीच नहीं
बाज़ार के वृत्त के लगभग बाहर
वह बेच रहा था गोल-गोल,
स्वस्थ, सुडौल टमाटर

टमाटर ख़ुश थे
और ग्राहकों के झोले के अंदर जाने के लिए
उछल रहे थे
जैसे घूमने जाने के लिए
बच्चे उछल पड़ते हैं
वे उछल रहे थे

किसान बिल्कुल चुप था
टमाटर ग्राहकों से कुछ कह रहे थे
लेकिन उनकी आवाज़
कोचिए की आवाज़ के नीचे दबती जा रही थी

‘टमाटर कैसे दिए’ – मैंने पूछा
टमाटर कुछ नहीं बोले
किसान ने जवाब दिया – ‘दस के दो’
उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी
कि लगा वह ख़ुद से बात कर रहा है

फिर मैंने लाल टमाटरों को छूते हुए कहा –
‘दस का तीन किलो नहीं दोगे ?’
टमाटरों ने अब उछलना बंद कर दिया
जैसे बाहर के आदमी को देखकर
बच्चे हो जाते हैं चुप
टमाटर भी चुप हो गए

मैंने आदेश के अंदाज़ में दोहराया –
‘तीन किलो दो, दस रूपये में ?’
इसके बाद वह टमाटर में कुछ ढूँढने लगा
जैसे दुकानदार अपने समान में एमआरपी ढूँढता है
वह ढूँढने लगा

फिर वह झुक गया तराजू की ओर
और तराजू है कि हर बार झुकता रहा मेरी ओर
इस बीच मुझे लगा
जो तौल रहा है वह टमाटर है
और जो तौला जा रहा है वह किसान है
हो सकता है यह मेरा भ्रम हो

जब मैं लौटने लगा
तो मुझे महसूस हुआ टमाटर फिर से उछलने लगे हैं
इस बार मेरे झोले के अंदर के टमाटर थे
जो बाहर आने के लिए उछल रहे थे

इस पूरे दृश्य में
मैं उस बच्चा-चोर की तरह लग रहा था
जिसके झोले में कैद थे बहुत सारे बच्चे

बाज़ार में किसान -2
……………..

वह कोचिया नहीं
एक ठेठ किसान था
जो बैठा था बाज़ार में

वह बैठा था और बेच रहा था
बाज़ार में
बाज़ार से बचते हुए
वह टमाटर बेच रहा था

किसान बाज़ार के अंदर कहीं था
और किसान के अंदर बाज़ार कहीं भी नहीं था
फिर भी वह बेच रहा था

कुछ बेचने वह पहली बार आया था
इसलिए बाज़ार उसे नहीं जानता था
और वह भी बाज़ार को कहाँ जानता था
दोनों एक दूसरे को न जानते हुए
कुछ बेच रहे थे
किसान टमाटर बेच रहा था
मगर बाज़ार क्या बेच रहा था ?
वह नहीं जानता था

बाज़ार को बिना जाने-पहचाने
बाज़ार में वह टमाटर बेच रहा था

-यशपाल जंघेल
तेन्दूभाठा (खैरागढ़)

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