May 28, 2025

तो तुम लेखक बनना चाहते हो

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कविता रोज लिखते हैं मन में आए इतना लिखते हैं लेकिन क्या सच में हम कविता लिखते हैं। बहुत दिनों बाद में कुछ अच्छा पढ़ने को मिला।
■ तो तुम लेखक बनना चाहते हो

अगर फूट के ना निकले भीतर से कुछ
सब कुछ होते हुए भी
तो मत लिखो।

अगर बिना कहे ना निकले तुम्हारे
दिलो-दिमाग़ और जुबां से
और अंतड़ियों से
तो मत लिखो।

अगर तुम्हें घंटों बैठना पड़े
अपने कम्प्यूटर स्क्रीन को ताकते
या टाइपराइटर पर झुककर
शब्दों को तलाशते
तो मत लिखो।

अगर तुम लिख रहे हो नावे या
नाम के लिए
तो मत लिखो।

अगर तुम लिख रहे हो
किसी को बांहों में लेने के लिए
तो मत लिखो।

अगर करनी पड़े मशक्कत
बार-बार सुधार करने के लिए
तो मत लिखो।

अगर लिखने के बारे में सोचकर ही
झन्ना जाए दिमाग
तो मत लिखो।

अगर किसी और की तरह
लिखने की कोशिश कर हो
तो रहने ही दो।

अगर वक़्त लगता है इसे मुखरित होकर भीतर से आने में
तो धीरज धरो, वक़्त दो।
अगर यह फिर भी मुखरित न हो आपके भीतर से
तो कुछ और करो।

अगर पहले पढ़ कर सुनाना पड़ता है
अपनी बीवी या माशूका या माशूक
या मां-बाप या किसी और को
तो तुम कच्चे हो अभी।

अनगिनत लेखकों जैसे मत बनो
उन हजारों जैसे तो मत ही बनो
जो कहते हैं खुद को लेखक
रहते हैं उदास, खोखले और नक्शेबाज़
आत्ममुग्ध मत बनो।

दुनिया भर के पुस्तकालय
लेते हैं जम्हाई
इस तरह के लेखन से।
इस तरह का मत लिखो।
मत ही लिखो।

जब तक तुम्हारी आत्मा से
शब्द झरते हुए न आएं
खामोशी जब तक
जुनून, खुदकुशी या कत्ल
का इरादा पैदा न कर दे
तब तक मत लिखो।

जब तक कि तुम्हारे भीतर का सूरज
तुम्हारी अंतड़ियों में आग न लगा दे
मत लिखो, मत ही लिखो।

क्योंकि जब वक़्त आएगा
और तुम पर होगी नियामत
तो तुम लिखोगे और लिखते रहोगे
जिंदा रहने तक या तुम्हारे भीतर इसके रहने तक।

कोई और तरीका नहीं है लिखने का
कोई और तरीका था भी नहीं कभी।

◆ चार्ल्स बुकोस्की
●अनुवाद: भुवेन्द्र त्यागी

Bhuvendra Tyagi

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