जीवन के सफर मे
पक्के, चमचमाते रास्ते
कम ही मिलते है !
अक्सर मिलती है
अजनबी पगडंडियाँ
उबड़- खाबड़ सी..
सुनसान,वीरान!
भीड़ से कटे
इन बेतरतीब रास्तों से ही
मुकम्मल है….
आवश्यकताओ का समीकरण
जिन पर चलते हुए
अँगूठे पर हर बार लगती हुई
ठेंस कहती है
जिंदगी आभासी नहीं !
–नीरजा बसंती