लोक का प्रतिबिंब-” सुरति अउ सुरता”

वीरेन्द्र सरल
लोक साहित्य , लोक जीवन के अनुभवों का निचोड़ होता है। जिसके आलोक में हम अपने वर्तमान को सुधारते हुए भविष्य को संवार सकते हैं। लोक का लक्ष्य केवल ‘स्व’ नहीं बल्कि ‘पर’ था। आज हमारा जीवन स्व पर केंद्रित होता जा रहा है।
लोक में परस्पर सहकारिता, सामुदायिकता का भाव वह प्रकाश स्तम्भ है, जो हमारा मार्गदर्शन करता है। लोक गीतों में जहां जीवन दर्शन समाया हुआ है वहीं लोककथाओं में जीवन सन्देश प्रतिबिंबित होता है।लोकोक्तियाँ जहां बहुत कम शब्दों में बहुत बड़ी बातें कहने में समर्थ है वहीं लोक गाथाओं में मानवीय मूल्यों की प्रतिस्थापनाएँ है। आवश्यकता इस बात कि है, हम अपनी चिंतनशीलता के माध्यम से उन संदेशों को समझे और समाज के सामने लाएं। आदरणीय कुबेर जी द्वारा यह सार्थक प्रयास किया गया है।
हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में समान रूप से कलम चलाकर लगभग साहित्य की सभी विधाओं को समृद्ध करने वाले रचनाकार को छत्तीसगढ़ प्रदेश कुबेर के नाम से जानता और पहचानता है। वैसे तो कुबेर जी का पूरा नाम कुबेर सिंह साहू है पर साहित्यिक बिरादरी में कुबेर कहना ही पर्याप्त है। कुबेर भाई पहचान के मोहताज नहीं हैं। उनकी अनवरत चलने वाली लेखनी उनकी साहित्यिक निरन्तरता और सक्रियता का परिचायक है। कविता, कहानी, व्यंग्य, लोक कथाएं, अनुवाद जैसी साहित्यिक विधाओं को साधने और समृद्ध करने के पश्चात अभी उनकी नवीनतम कृति निबन्ध, आलेख और संस्मरण पर केंद्रित है, जो सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हुई है। इस संग्रह को उन्होंने बड़ा प्यारा सा शीर्षक दिया है ‘ सुरति अउ सुरता ‘ ( श्रुति और संस्मरण )।एक रचनाकार की दृष्टि सदैव सजग होती है और मस्तिष्क हमेशा चिंतनशील होता है। छोटी -छोटी बातों से काम की बड़ी और उपयोगी बातें निकाल कर, अपने शब्दों में पिरोकर समाज के सामने उसकी उपयोगिता सप्रमाण सिद्ध करना ही साहित्यकार का कर्म और धर्म है।
आज के बदलते परिवेश और आधुनिकता के अंधानुकरण से हम अपने लोक साहित्य के अनमोल खजाने को विस्मृत करने पर तुले हैं। ऐसा नहीं है कि हर पुरानी बातें व्यर्थ और हर नई बातें अच्छी ही हो। विवेकशील समाज ‘ सार- सार को गहि लियो, थोथा दे उड़ाय ‘ का अनुगामी होता है। पुरानी अंध मान्यताओं, रूढ़ियों एवम कुरीतियों का बहिष्कार तो होना ही चाहिए मगर नवीनता के मोह में हम यदि अपने अतीत की उपयोगी बातों को भी विस्मृत कर दें तो इसे बुद्धिमानी कहना उचित नहीं है।
कुबेर भाई की दृष्टि यही पर पड़ी है और उन्होंने सुरति अउ सुरता के माध्यम से लोक साहित्य के अनमोल रत्नों को हमारे सामने लाने का श्रम किया है।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति कृषि संस्कृति है। हमारा प्रदेश सदैव प्रकृति पूजक रहा है इसलिए यहां मनाए जाने वाले अधिकांश पर्वों का सम्बंध कृषि और प्रकृति से है। प्रकृति और जीवन दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। प्रकृति के बिना जीवन का अस्तित्व सम्भव ही नहीं है। लोक साहित्य में प्रकृति और जीवन संरक्षण का महत्वपूर्ण सन्देश समाहित है। लोक साहित्य प्राचीनकालीन जनजीवन का दर्पण है जिसमें हमारे पुरखों का रहन सहन , खानपान, जीवन शैली, अवरोध-प्रतिरोध के व्यापक संसार से हम परिचित हो सकते हैं।
लोक साहित्य म लोक प्रतिरोध, छत्तीसगढ़ी भाखा म हाना बिचार, लोक संस्कृति अउ आज के बाजार संस्कृति, छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य परम्परा, दशा-दिशा अउ विकास, शब्द के ज्ञान अउ लोक के ज्ञान, साहित्य अउ क्रांति, लोक साहित्य अउ मिथक, जउन गढ़े वो गुरु, धर्म अउ ओखर सुभाव जैसे निबंधों के माध्यम से कुबेर भाई ने लोक साहित्य के उन उजले पक्षों को हमारे सामने लाया है जिसका लक्ष्य वसुधैव कुटुम्बकम के भाव को साकार करना है।
छत्तीसगढ़ी ददरिया म लोक चेतना एवम सुरहोती के लोक सन्दर्भ जैसे महत्वपूर्ण आलेखों के माध्यम से लोक गीतों एवम लोक पर्वों की उपयोगिता से हमें परिचित कराने का प्रणम्य प्रयास किया है।
सिकरिन दाई संस्मरण में ममत्व से परिपूर्ण मगर समाज से उपेक्षित एक नारी की व्यथा कथा कहने की कोशिश की है तो चकोतरा संस्मरण के माध्यम से बाल्यकाल के प्रेम भावना को व्यक्त किया है। अमृत के स्वाद संस्मरण में भी मातृ शक्ति के ममत्व को ही केंद्रीय भाव बनाया है और अंत में खुमान सर के गोठ माध्यम से लोक संगीत के पुरोधा स्व खुमान साव जी के जीवन वृत से पाठकों का परिचय कराया है।
मेरी समझ में इस कृति का महत्व लोक साहित्य में रुचि रखने वाले और लोक के आलोक को समझने के लिए जिज्ञासु पाठकों के लिए तो है ही साथ ही साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले उन विद्यार्थियों के लिए भी है, जिन्हें छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य की उत्तम और प्रमाणिक कृति की तलाश है।
मैं कुबेर भैया जी को इस शोधपरक कृति हेतु हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं देता हूँ।
वीरेन्द्र सरल
ग्राम-बोडरा
पोष्ट-भोथीडीह
व्हाया-मगरलोड
जिला-धमतरी, छत्तीसगढ़
पिन 493662
मो 7828243377
कृति का नाम-सुरति अउ सुरता
लेखक-कुबेर
प्रकाशक-सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली
मूल्य-200रुपये मात्र