अंजु दास गीतांजलि की 5 ग़ज़लें
ग़ज़ल- 01
हर ज़िन्दगी की होती इक जैसी ही कहानी।
होता पुराना किस्सा , होती नई कहानी।
हर दिल है ग़मज़दा आँखों में है पानी सबके।
होती है ज़िन्दगी की सबकी यही कहानी।
चेहरे पे मुस्कुराहट दिल में भरा होता ग़म।
हर ज़िन्दगी के पीछे सच्ची – झूठी कहानी।
बेमतलबों का मत मारो ताना तुम किसी को।
सच कहती हूँ मैं सबकी है इक जैसी कहानी।
जो मेरे संग बीती वह तेरे संग बीती।
सच अंजु जैसी मेरी वैसी तेरी कहानी।
. ग़ज़ल – 02
जब चली मैं जाऊँगी उजड़े चमन में ढूंढ़ना तुम।
दूर तक तुमको नज़र मैं आउँगी तब देखना तुम।
यादों की अपनी वीरानी छोड़ जाऊंगी यहीं मैं।
होगी कुछ बातें अधूरी याद करके सोचना तुम।
भींगा मौसम आएगा बारिश का जब इक काम करना।
कब्र पर मेरी गुलाबी फूल आ कर रख जाना तुम।
अश्क़ जब आँखों में भर – भर आए आँसू रोक लेना।
क्या कहूं तस्वीरें मेरी देखकर मुस्का लेना तुम।
इन हवाओं में भी थोड़ी सी मेरी खुशबू रहेगी।
बात करना इन हवाओं से मेरी ग़ज़लें गाना तुम।
अंजु अपनी गीत ग़ज़लों में भी जिंदा ही रहेगी।
हो सकें तो गीत , ग़ज़लों में मुझे तालाशना तुम।
. ग़ज़ल:- 03
तुम आओ तो महफ़िल की शुरूआत करूँगी।
ग़ज़लों और नग्मों की मैं बरसात करूँगी।
मुश्किल होगी खुलकर बात करने में मुझे भी।
बातों – बातों में दिल की सारी बात करूँगी।
जीवन भर जो तुम भूल ना पाओ मैं तुमसे।
इक वैसी ही दिलकश सी मुलाकात करूँगी।
क्यों ख़्वाब अधूरे और उलझे से हैं मेरे।
तुमसे कई सारे मैं सवालात करूँगी।
अंजू की मुहब्बत को कभी भूलना मत तुम।
कुछ नाम तुम्हारे हसीं लम्हात करूँगी।
. ग़ज़ल-04
जब वक़्त होता है बुरा तब अपने भी ठुकराते हैं।
दौलत हो जिनके पास उनको हर कोई अपनाते हैं।
जब औरों की है बारी आती लोग ताने दे उसे।
बीते हुए दिन लोग अक्सर अपने क्यों भुल जाते हैं।
सबको तो अपना दर्द अपना लगता लेकिन औरों की।
तकलीफ़ उनको लफ्ज़ भर लगता उन्हें झुठलाते हैं।
जिस शख्स का बीता हो बचपन खानदानी घर में ही।
वो दूसरे की देखकर दौलत कहाँ ललचाते हैं।
हद अंजु तब हो जाती है जिनके नसीबों में तनिक।
सी आये दौलत और दौलत देख वो इतराते हैं।
. ग़ज़ल-05
उसकी नज़रों के मुताबिक़ मैं नज़र आऊं कैसे।
अपने दिल की बात उससे अब मैं बतलाऊं कैसे।
सारी दुनियां में वो ही इक मेरे दिल को भा गया।
अब मैं अपने दिल को रोकूँ कैसे , समझाऊं कैसे।
जिसको आना था मेरी इस ज़िन्दगी में ,आ गया।
राज़ उल्फ़त का ये सबसे अब मैं बतलाऊं कैसे।
ओढ़ कर नाक़ाब चेहरे पर रखूं मैं कब तलक।
नाम उसका आइना भी लेता , झुठलाऊं कैसे।
उसके पहलू में जा के दिल को बड़ा मिलता सुकूँ।
अंजु की वो है मुहब्बत , उसको बिसराऊं कैसे।
अंजु दास गीतांजलि….✍️पूर्णियाँ ( बिहार )
सम्पर्क :-
अंजु दास “गीतांजलि”
पति – श्री संजय कुमार दास
शिव शक्ति नगर ,पंचायत भवन
नेवालाल चौक , पूर्णियाँ ( बिहार )
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