कुछ छोटी कविताएँ (क्षणिकाएँ)
(1 ) पहचान
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तुम पहचान में
बन गए हो
एक अजनबी
तुम्हारी सभी पहचानें
शहर के चौराहों पर
टंगी हैं
गुमशुदा वाले
इश्तहारों में
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(2 ) बीज
तुम जो नदी
चुरा कर लाये थे
उसे मैंने
बहा दिया है
रेगिस्तान में
बंजर धरती
पालने लगी है
अपनी कोख में
एक नन्हा बीज
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3 ) पुश्तैनी
हम आज भी
हल और बैलों से
जोतते हैं खेत
पुश्तैनी माटी
से जोड़ रखा है
हमने अपना रिश्ता
और रहते हैं
अपने पुश्तैनी
मकान में
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4 ) बंटवारा
जमीन का
नहीं होता बंटवारा
होता है मन का
विभाजित रिश्तों में
जमीन के टुकड़े
हो जाते हैं लहूलुहान
और टंग जाती हैं
लाशें खूंटी से
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5 ) जमीन
जमीन से
जमीन तक
फैला है रेगिस्तान
उग रही है भूख
बंजरों पर भी
हक़ जताने की
मची है होड़
कहाँ है
उपजाऊ ज़मीन
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जयप्रकाश श्रीवास्तव आई.सी.5 सैनिक सोसायटी
शक्तिनगर जबलपुर (म.प्र.) मोबा.7869193927