एक लघुकथा
डॉ जे के डागर
सुहाग रात की रात के बाद सुबह ,
कविता, जी मै चाय बना लाऊं,
राजीव, नहीं तुम मेरे सामने बैठी रहो।
चाय आ जाएगी।
कविता,अरे बना लाती हूं ना।
बोला ना तुम मेरे सामने से उठी तो मेरी सांस रुक जाएगी,बैठी रह
तभी कविता का मोबाइल बजा
कविता, मोबाइल पर;जी कौन—-गुस्से से,
मैं किसी रवि को नही जानती।खबरदार फिर कभी फोन किया तो—
राजीव, कौन था डार्लिंग
क,, ऐसे ही कोई बदमाश था मै नही जानती
कुछ देर दोनो चुप,,,
कविता, मै वाश रुम से आती हूं कह कर वाह रूम गई
उसका मोबाइल फिर बजा
राजीव ने मोबाइल उठाया,,कौन-
उधर से,,कविता को दीजिए मैं रवि, उसका हसबैंड बोल रहा हूं,मेरी जाब क्या छूटी उसने मुझे ही छोड दिया,,
राजीव के शरीर से सांस और पैरों तले जमीन निकल गई
कछ पल बाद कविता वाश रूम से आई दोनों चुप,,,,,
कविता, क्या हुआ डार्लिंग
राजीव, चुप
कविता बोलो ना क्या,,
राजीव, ये रवि कौन है,,
कविता दो पल बाद, यह कोई बदमाश है
राजीव, तुम तो कह रही थी किसी रवि को नही जानती।चल उठ ,सामान पैक कर,,,
कविता राजीव का कंधा छू कर,क्या हुआ गुस्सा न करो ,,
राजीव ,कविता का हाथ छिटक कर, बोला ना उठ सामान पैक कर,चल घर वापस
कविता,मेरा विश्वास करो सच रवि एक बदमाश है मेरे पापा के साथ बिजनेस पार्टनर था फिर दुश्मन बन गया,,,,,
राजीव, तुमने उस से शादी कब की ।
कविता,कसम से आपकी कसम मैने कभी कुछ नहीं किया पापा से उसका झगडा हुआ और वह हमारा दुश्मन बन गया
राजीव, चल उठ सामान पैक कर
कविता,लेकिन रूम तो तीन दिन के लिए लिया है,,
राजीव, मैं वापस जा रहा है तुम रहो
राजीव और कविता हनीमून बीच मे छोड वापस घर आ गए
घर वाले भी हैरान थे न राजीव कुछ बताए न कविता।।
समय गजरता रहा उनके तीन बच्चे भी हो गए मगर राजीव के दिल से रवि न निकला,और कविता निकली रही।
कोई 15वर्ष बाद राजीव कहीं जाने के लिए स्टेशन पर खडा था।ट्रेन आई, राजीव डब्बे मे घुसा उसके साथ एक और यात्री भी घुसा। साथी यात्री ने पहले से बैठे एक यात्री से,,अरे रवि ।कैसे हो ,क्या हाल है अरे कभी न फोन न कुछ हमें भुला दिया क्या।और तुम्हारी उस कविता का क्या हुआ?
रवि,अरे बस जी रहे है शर्मा से अपनी जमी नही कविता ने बात की नही मै तो छोडकर मुम्बई चला गया था मगर शर्मा का बदला मैने जरूर लिया कविता की सुहागरात को ही ऐसा फोन किया था ऐसी आग लगाई कि उसका पति क्या नाम था साला राजीव, आजतक उसका न हुआ
राजीव सुनकर पागल सा हो गया शादी के आरम्भिक 15वर्ष ,,,,
लघुकथा का सार
जल्द बाजी मे किसी के प्रति धारणा न बनाएं।।
यदि राजीव कविता से, कविता के पिता जी से और रवि से 15 ,15 मिनट बातचीत करता तो जीवन के 15 वर्ष सुखी हो जाते। सादर।।