डॉ. जया आनंद की कविताएं
1*
कुछ भी तो भूलता नहीँ
बस समय के चक्र में
पीछे छूट जाता है
दब जाता है कहीं
मन के कई परतों के नीचे,
जीवन के कोलाहल से दूर
एकांत के क्षणों में
मन उलीच देता है
जिया हुआ हरेक पल
खिलते हुए दिन
बिसुरी हुई रातें
अलसायी दुपहरी
लरजती शामें
दुःख की गाँठे
सुख के बंधन
रुदन के गीत
जीवन का संगीत। …
कुछ भी तो भूलता नहीं
फिर बोलो कैसे भूलूँ तुम्हें !!
2*
प्रेम है शायद !!
तुम्हारे आने की प्रतीक्षा
तुम्हारे न आने की उदासी
तुम्हारे मिलन का गीत
तुम्हारे विछोह का संगीत
प्रेम है शायद !!
तुम्हारा अपनापन
तुम्हारी खुशी
तुम्हारी सफलताएं
और मेरी मुस्कान
प्रेम है शायद !!
तुम्हारे साथ कुछ पल बिताना
मन का जमुना हो जाना
तुम्हारा कृष्ण हो जाना
और मेरा राधा हो जाना …
3*
प्रेम में तुम्हारा
मित्र हो जाना
उस इत्र के जैसा
जिससे महकती है
जिंदगी ताउम्र
प्रेम में सुदूर
भटकते हुए
तुम्हारा वापस
लौट – लौट आना
कुछ इस तरह
कि जैसे तुम
कभी गए ही
नहीं थे
****
प्रेम में तुमसे
किया हर संवाद
जैसे भाषा का वैविध्य
विचारों की वृष्टि
भावों की संसृति
…और आत्मिक तृप्ति