लोक भाषाओं ने हिंदी का लोकतंत्र किया मजबूत
भाषायी प्रदूषण और कोरोना काल में संवेदना के संकट पर चिंता
सप्रे जयंती पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न
रायपुर। भारतीय मनुष्य के पास साहित्य, भाषा और संस्कृति की विरासत है इसलिए हिंदी का लोकतंत्र न केवल भारत अपितु भारत के बाहर भी तेजी से मजबूत हो रहा है। उक्त विचार छत्तीसगढ़ मित्र द्वारा आयोजित पं माधवराव सप्रे जयंती समारोह अंतरराष्ट्रीय वेबिनार के दूसरे दिन नीदरलैंड की हिंदी लेखिका डॉ पुष्पिता अवस्थी ने मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।
वेबिनार के दूसरे दिन नीदरलैंड हिंदी फाऊंडेशन के अध्यक्ष डॉ पुष्पिता अवस्थी ने कहा कि आज की राजनीति का प्रदूषण न केवल देश के लोकतंत्र को बल्कि साहित्य और भाषा के लोकतंत्र को प्रभावित कर रहा है। कोरोना के समय में मनुष्य के रिश्तों और संवेदना की पोल खोल दी है। हम साहित्यकारों को वाचक और चिंतक के बजाय समाज के साथ जीकर लिखना होगा।
अध्यक्षता करते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र दिल्ली के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि पथरिया से लेकर रायपुर तक विविध आयोजनों के साथ सप्रेजी के योगदान को याद किया जारहा है। सप्रेजी ने विद्यार्थियों, युवाओं और आमजनों को भारतीय संस्कृति के आधार पर व्यक्तित्व विकास के लिए अपने निबंध में प्रशिक्षण दिया था। कहानी, समालोचना, निबंध, अनुवाद, इतिहास दृष्टि और अन्य माध्यम से हिंदी को समृद्ध किया।
छत्तीसगढ़ मित्र के संपादक डॉ सुशील त्रिवेदी ने आधार वक्तव्य देते हुए हिंदी के लोकतंत्र के विविध पहलुओं की जानकारी दी। वरिष्ठ लेखक डॉ परदेशीराम वर्मा ने कहा कि सप्रे जी का लेखन विविधता के बावजूद गुणवत्तापूर्ण था। उन्होंने साहित्य, पत्रकारिता और हिंदी के लिए एक वातावरण तैयार किया ।
इसी वातावरण के कारण बख्शी जी सरस्वती जैसी पत्रिका के संपादक बने। अजमेर से वरिष्ठ आलोचक डॉ संदीप अवस्थी ने कहा कि हिंदी का नवजागरण काल हिंदी का आधार स्तंभ है। नवजागरण काल में भारतीय समाज की अनेक विसंगतियों का समाधान हुआ।
वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री गिरीश पंकज ने कहा कि हिंदी का विकास उसके लोकतांत्रिक स्वभाव के कारण हुआ है। हिंदी महानदी की तरह है जहां अनेक भाषायी नदियां समाहित हैं।
भाषाविद डॉ चित्त रंजन कर ने कहा कि हिंदी की सामासिक संस्कृति है। लोक की भाषा के रास्ते आवाजाही ने हिंदी को मजबूत किया है। हिंदी का कंपोजिट कल्चर हिंदी की विशेषता है। दिल्ली के साहित्यकार डॉ नारायण कुमार ने हिंदी की दुनिया की विशेषताओं को बताया और लोकभाषाएं हिंदी की स्रोत हैं।
नार्वे के प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार और भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के अध्यक्ष तथा स्पाइल पत्रिका के सम्पादक सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ने बताया कि पूरी दुनिया में हिंदी पत्रकारिता का अलग मुकाम है। समाचार अपने स्रोतों के बिना केवल सूचना है। इसलिए लोकभाषाओं का संवर्धन जरूरी है।
वेबिनार मे आलोचक डॉ संदीप अवस्थी, डॉ देवधर महंत, डॉ जवाहर कर्नावट, प्रताप पारख, आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। वेबिनार में तीन देशों के विद्वानों के अलावा भारत के पांच राज्यों के विद्वान, प्राध्यापक और शोध छात्र उपस्थित थे। संयोजक डॉ सुधीर शर्मा ने बताया कि दोनों दिनों का विमर्श आम जनता के लिए यूट्यूब में छत्तीसगढ़ मित्र के चैनल पर उपलब्ध है। शीघ्र ही सप्रे समग्र और अन्य पुस्तकों का प्रकाशन होगा।