नई कहानी : प्रेशियस स्टोन्स
सोचती रही कुछ पलों तक क्या करें ?तभी उसके हाथ से टकराया एक हाथ और हल्का सा उसकी पीठ को दबाया भी।अब सोचने का समय नहीं था वह झटके से घूमी और तड़ाक, सनसनाता हुआ थप्पड़ पूरी बस में गूंज गया। वह आदमी हकबकाया सा अपने गाल पर हाथ थामे चुपचाप देखता रहा उसे। जी हां हमारी नायिका जिनका नाम निधि है, ने भी तेज निगाहों से उसकी ओर देखा और कुछ नहीं बोली। तभी स्टॉप आ गया और वह उतर गई । मन ही मन डर तो बहुत लग रहा था शायद वह आदमी पीछे उतरेगा और पीछा करेगा। लेकिन कुछ दूर चलने के बाद जब डरते डरते पीछे देखा और किसी को नहीं आता देख राहत की सांस ली। फिर तेज कदमों से चलते हुए सब्जी मंडी की तरफ मुड़ गई। घर जाने से पहले सब्जी लेते हुए ही जाती थी, वरना फिर से वही पापड़ की सब्जी खाओ। वह तो खा भी ले पर मम्मी नही मानतीं।
लाइन से दोनो तरफ सड़क के सब्जी वाले बैठे थे।महिलाएं ज्यादा थीं। यह सब्जी उगाना भी स्वरोजगार का बेहतरीन जरिया है। स्टार्टअप ऐसा जिसमे कोई नया इन्वेस्टमेंट नही और रोज की इतनी आमदनी की चार लोगो का पेट भर जाए। बस गावँ की अपनी जमीन या झोपड़ी के पीछे की जगह पर सब्जियां मौसमी उगाओ और बाकी बिक्री आपके व्यवहार और ग्राहक (customer relations ) पर निर्भर। कुछ तो गावँ से शहर रोज नही आ सकते तो उनकी सब्जियां वहीं गावँ में खरीद (अक्सर उधारी में,बिक्री के बाद पैसे देंगे)शहर में लाकर बेचते और अपना मुनाफा निकाल उन्हें पैसे देते। कुछ कुछ सरकार की आउट सोर्सिंग जैसे। या बड़े व्यापारिक घरानों के प्रबंधन की डिग्री लिए सीईओ के जैसे यह निरक्षर लोग काम करते।यही भारतीयता है जहां लोक अपने कार्यों के लिए किसी सरकार पर निर्भर नही बल्कि अन्य लोगो के लिए भी जुटा लेता गया जीवन के साधन ।छोटी सी जगह में अनेक लोग शाम को सब्जियां खरीदते ,हर तरफ शोर शराबा ,”क्या भाव दिए टमाटर? साठ रुपए किलो? बहुत महंगा है।” ‘ शाम को सस्ता हुआ है सुबह हम सौ रुपए किलो बेचे हैं। और बहिन जी परवल ले जाओ चालीस रुपया किलो दे देंगे।’ इन्ही के मध्य सब्जी खरीदती वह रुकी,’क्या भैया आधा किलो में बस चार टमाटर? सही से तोलो न।” अरे टमाटर बड़े हैं मैडम, इसलिए कम हैं।’ नही रहने दो फिर दूसरे से ले लुंगी।’ वह गुस्से में आगे बढ़ी। ‘,अरे नही नही,ले जाइए लो अब छोटे वाले रखे हैं तो बढ़कर छह सात हो गए।’
ऐसे ही माहौल से दो चार होती आगे बढ़ी और फिर अपने मोहल्ले की तरफ जाने वाली सड़क पकड़ी। दो दिन से अजीब सा भारीपन और तनाव महसूस कर रही थी। गुस्सा आता कारण भी वाजिब थे पर किस पर निकाले? समय बर्बाद होता और मूड खराब सो अलग । इससे अच्छा की थोड़ा चुप ही रहा जाए। आजका दिन ऐसा ही रहा। आफिस में भी साहब के मुहँ लगे बाबू से झगड़ा हो गया जब उसने बिना वजहफ़ाइल के लिए कहा जो वह पिछले दिन ही क्लियर कर चुकी थी। आखिर साहब की पसंदीदा कंपनी थी। पर वह बाबू बिना वजह खुद फ़ाइल दबाए बैठा था और दोष उस पर डाल रहा था। साहब के सामने ही आज तो उसे वह खरी खोटी सुनाई की सीधा हो गया। वह मुस्कराई। ठंडी हवा में सांस ली। और हाथ की उंगलियों में लगी दोनो अंगूठियों को सहलाया। पता नही कोनसे नग थे पर तीन दिनों से काफी सुकून और ऊर्जा अपने अंदर महसूस कर रही थी। घुटन शायद बहुत बढ़ गई थी जबसे उसका प्रोमोशन अटका हुआ था। पर अब लगता था कि होना होगा तो हो जाएगा नही तो कोई बात नही । पर फिर से उसके चेहरे पर तनाव छा गया। दूर से ही वह दिख गए ।चौराहे के कोने का यह डेयरी बूथ जबसे लगा था निठल्ले और आवारा किस्म के लोगो का ठिकाना बन गया था। दुकानदार की बिक्री होती थी सिगरेट, गुटखे आदि की तो वह इनसे बनाकर रखता। यह आवारा लोग वहां सुबह शाम खड़े होकर आने जाने वाली लड़कियों और औरतोँ को घूरते रहते। मोबाइल पर गंदे भद्दे गाने बजते रहते। सब कितना जायज और स्वस्थ वातावरण है यह कोई वहां से रोज गुजरने वाली महिलाओं से पूछे। वह साड़ी का पल्लू लपेटते हुए अपनी हिम्मत को जुटाते हुए सामने देखते हुए आगे बढ़ी। अक्सर यही तरीका अपनाती हैं स्त्रियाँ की अनजान बन इन शोहदों,आवारा लोगो से सामने सुदूर देखते हुए चलती जाती हैं। अक्सर फब्तियां,छींटाकसी होती हैं उन्हें अनसुना करते हुए बढ़ जाना होता है। दिन प्रतिदिन जरा सोचें यह आधी आबादी वह भी शिक्षित के साथ तो और अधिक,हो तो आप कैसे महसूस करेंगे मेरे पुरुष (?)दोस्तों,ऐसी घुटन भरी जिंदगी होगी, जो आप सहन नही कर सकते एक हफ्ते भी। पर हमारी कहानी की नायिका आज फिर दो चार होने जा रही।
“देख ,आ रही है।आज तो गुलाबी साड़ी में खूब जँच रही हो।” पहली टिप्पणी टकराई ,वह कुछ कदम दूर थी। तीनों लड़के उसी कॉलोनी के थे,उनके साथ दुकानदार भी देखने लगा लालसपूर्ण ढंग से। ” वह गाना तो सुना यार जो कल सुना रहा था” एक ने आंख मारते हुए कहा। “कोनसा वह गुलाबी आंखों वाला?” नही वह नही , रांझा रांझा कहते कहते हीर दीवानी हुई…तब तक दूसरे ने अपनी फटे बांस सी आवाज में गाया। दो पलो में वह डेयरी के सामने से सिर झुकाए गुजर ही रही थी कि..
कॉल बेल की आवाज सुनकर उन्होंने घड़ी की तरफ देखा दोपहर के दो बज रहे थे, कौन होगा इस वक्त? उनकी 70 वर्षीय मां दरवाजा खोलने बढ़ी।” रुको मैं दरवाजा खोलता हूं।” दरवाजा खुला सामने एक युवक चश्मा लगाए और हाथों में एक बैग लिए खड़ा था । “जी कहिए क्या बात है ?” “सर अगर आपके पास 2 मिनट हो मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं।” “बताइए जरूर।” “हम यह कोविड-19 में लाइफ इंश्योरेंस की ऐसी पॉलिसी आपके लिए लाए हैं जो बीमारी में कैशलेस उपचार के साथ परिपक्व होने तक आपको एक फिक्स रकम भी हर महीने देती रहेगी ..”….. आगे उसके शब्द मुंह में ही रह गए और सामने वाले ने गुस्से में उसे देखते हुए कहा,” क्या आपको लगता नहीं है ऐसे किसी के भी दरवाजे की घंटी बजा कर के अपनी यह बकवास शुरू कर देना गलत बात है?” ” सर सर आप मेरी बात तो सुनिए..।”
” कुछ नहीं गेट आउट।” और धड़ाक से उसके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया। वह पसीना पोंछते बोझिल कदमों से आगे बढ़ा । यह इसी बिल्डिंग में चौथा फ्लैट था जहां से नाकामी हाथ लगी थी। अनिल सोचता हुआ धीरे-धीरे सिर झुकाए लिफ्ट की ओर बढ़ रहा था। उसने हाथों में पहनी हुई पुखराज,गोमेद,मूंगे की अंगूठियों की तरफ देखा जो बड़े विश्वास से उसकी पत्नी ने कुछ हफ्ते पहले किसी माने हुए ज्योतिष से मंगवाई थी। उसे पहनाई थी की इन्हें पहनने से उसकी किस्मत खुल जाएगी। वह हर महीने के अपनी इंश्योरेंस पालिसी के लक्ष्य पूरे कर लेगा। खुशहाली ही खुशहाली होगी जीवन में। जब से पहनी थी तोअसर बढ़ने की जगह खत्म हो गया था । पहले वह एक-दो पॉलिसीज बेच लेता था पर अब तो जहां जाता वहीं अपमान हाथ लगता। क्या करूं क्या करूं क्या करूं? सोचते हुए उसने अंगूठियां उतार कर अपनी जेब में रखी और लिफ्ट में सवार हो गया।
अगले दिन फिर वही दबाब ।महीने का अंत कुछ दिनों बाद था और वह लक्ष्य से काफी पीछे। वेसे उसे रात को नींद अच्छी आई थी। छाया,उसकी खूबसूरत बीवी ने भी अंगूठियों के बारे में कुछ न पूछकर उसे राहत दी। वह भी जानती थी कि लक्ष्य पूरा नही हुआ अब तक।
क्या हमारे ग्रह चाल का हमारे जीवन पर गहरा असर होता है?या हम अपनी नाकामियों,औसत बुद्धि से बचने के लिए भाग्य का सहारा लेते हैं?क्या आज के तकनीकी युग में भाग्य, सितारों ,नगों में विश्वास रखना कुछ कुछ रूढ़िवादिता नही?
अगला दिन फिर एक परीक्षा की घड़ी थी।इस बार उसने कुछ सोचा,मंथन किया था और अपनी एमबीए की पढ़ाई के दौरान सीखे हुए सारे मंत्रों को उसने ताक पर रखा था। रास्ते मे एक झील आई और उसने जेब से चांदी की अंगूठियों प्रेशियस स्टोन्स जड़ी हुई सब झील के हवाले करदीं। अब वह बहुत हल्का और खुश खुश महसूस कर रहा था। उसे छोटे-छोटे लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ना था जैसे दरवाजा खुले तो दरवाजा बंद ना हो,दूसरे पार्टी के मतलब की ,फायदे की बात करना ,तीसरे उनको यह डर दूर करना कि कोई आपका नुकसान नहीं होगा।और सबसे बढ़कर आत्मविश्वास पूर्ण ढंग से हर स्थिति के लिए अपने आपको तैयार करना। इस आत्मविश्वास के साथ उसने आज एक नई शर्ट और नई टाइ पहनी थी और बहुत सधे कदम बढ़ाता हुआ आगे बढ़ रहा था। सामने ही इंपिरियल हाइट्स बिल्डिंग का ऑफिस आ गया था। वहां उसने इस बार सही तरकीब लगाई और वॉचमैन से बिल्डिंग के सेक्रेटरी से मिलने की इच्छा जाहिर की।तय कर लिया था आज मार्केटिंग की किताबी बातों को अलग रख कर के अपने अनुभव और सामने वाले को लाभ पहुंचे इस नीति पर चलेगा। शनिवार था उसे उम्मीद थी कि कुछ ना कुछ आज हो जाएगा।मंगलवार को उसे अपनी इस महीने की फाइनल रिपोर्ट कितनी पॉलिसी बिकी पेश करनी थी। वह सेक्रेटरी से मिलने के लिए उसके ऑफिस में कदम रख चुका था। वह 65 वर्षीय रिटायर्ड सरकारी अधिकारी उससे बड़े प्रेम से मिला। मिलते ही अनिल अपनी कंपनी की तरफ से एक शानदार डायरी, महंगा पेन और एक कवर सहित लंच बॉक्स उसकी नजर किया। जैसे आदत होती है हम भारतीयों की हम उपहार से बहुत जल्दी खुश होते हैं,वह खुश हुआ। और फिर संदिग्ध भाव से उसने उसकी ओर देखा। क्योंकि हर उपहार अपने साथ कुछ जिम्मेदारियां और रिटर्न गिफ्ट की उम्मीदें लाता ही है। “सर मैं आपसे मिलकर खुशी हुई।आपके व्यवहार और आपकी सुलझी हुई सोच की मैंने बहुत तारीफ सुनी है। सेक्रेटरी मंद मंद मुस्कुराया,” अरे यूं ही यह बिल्डिंग वाले ऐसे ही कहते रहते है।” “नहीं सर मैं पहले भी यहां एक दो बार आ चुका हूं ….उसने जेनुइनली चार माले ऊपर के फ्लैट ओनर का नाम लिया जिससे वह 2 दिन पहले ही रिजेक्ट हो करके गया था, बहुत तारीफ कर रहे थे आपकी।” “अच्छा कमाल है, खैर आप बोलिए आप क्या चाहते हैं मुझसे ?’ “आप मालिक हो सर ,मेरा तो अनुरोध है आपसे सर जी,वह रुका देखा वह गर्व से भर उठे थे, आप की सोसाइटी में लगभग 50 फ्लैट है तो मैं 1 घंटे का समय चाहता हूं कि सभी के साथ बातचीत हो जाए और हम अपनी कंपनी की तरफ से जो भी हमारी पॉलिसीज है उनके बारे में मैं बता सकूं । ऐसी एक कॉमन मीटिंग ,फिर उसको लेना या नहीं लेना अलग बात है । हम कुछ भी फोर्स नहीं करेंगे बस हम अपनी बात कहना चाहते हैं। “आप का मतलब है प्रेजेंटेशन?” ” जी सर जी।’ “तो इससे हमें क्या फायदा होगा ?’ सेक्रेटरी घाघ पूर्व सरकारी अफसर था , ” सर आप जो कहें आपके लिए हम करेंगे।’ उसने कुछ सोचा फिर मुस्कराते हुए कहा ,’ अच्छा तो एक काम करो जितनी पॉलिसीज हो उसका 10 परसेंट।” ” इतना तो सर हमें नहीं मिलता है आपको कहां से देंगे?” वह हिचकते हुए बोला। सेक्रेटरी उसकी ओर देखता रहा,” देख लो कल संडे है कल ही मीटिंग अरेंज हो सकती है मैं सोसाइटी की कमेटी से प्रस्ताव पास करवा लूंगा।और बाकी तुम्हारी इच्छा है। और हाई टी का इंतजाम तुम्हारी कंपनी की तरफ से ही रहेगा।” “उसकी कोई दिक्कत नहीं है वह मैं कर दूंगा लेकिन दस बहुत ज्यादा है हमको नहीं मिलता है।” ” तुम कितना देना चाहते हो?” ” सर ,सर 3 प्रतिशत हो पाएगा। ” ” 5 परसेंट और वह भी पॉलिसी बुक होने के दिन हीे । मैं यह नहीं सुनूंगा कि जब पॉलिसी का चेक जमा हो जाएगा तब हम देंगे।”
” ओके” सब कुछ सोचता हुआ अनिल बोला “ओके सर डन।’
यह जोश और अंदर से ऊर्जा प्रवाह वह कई दिनों से महसूस कर रही थी। उसने अपने हाथ में पहनी पुखराज,पन्ने की अंगूठियों को एक बार फिर छुआ । सिर उठाकर दृढ़ नजरों के साथ सामने देखा। सूरज घर की तरफ अग्रगामी था। और सिंदूरी शाम आने लगी थी। फिर भी इतना उजाला था की पहचान हो जाती किसका क्या इरादा है? वह सोचती रही, सोचती रही कि अचानक उसकी कमर पर कुछ लगा। वह ठिठकी,रुकी पीछे मुड़कर देखा। झुककर कमर पर फेंके फूल को उठाया। सामने दांत निपोरता वह शख्स खड़ा था। उसने उसे इशारे से पास बुलाया। बुलावा अनपेक्षित था पर फिर वह शान से चलता पास आया। पास आते ही उसके ऊपर मानो आसमान टूट पड़ा। न जाने कब उसके हाथ में मिर्च स्प्रे आया और उसकी आंखों में अंदर तक मिर्ची भरता चला गया। फिर उसने अपना कोल्हापुरी चप्पल उतारा और वह कस कस के उसके सिर पर बरसने लगे। ” खड़े होकर के लड़कियों और औरतों को छेड़ते हो । उसे अपनी मर्दानगी समझते हो ? हम औरतें कुछ बोलती नहीं तो उसे हमारी कमजोरी समझते हो? और मार पड़ती जा रही थी।दरअसल हमारे पास तुम जैसे गन्दी नाली के कीड़ों पर ध्यान देने की जगह और भी कई जरूरी काम होते हैं। लेकिन इसे हमारी कमजोरी मत समझना।” कहती वह उसे मारती रही। वह दुकानदार और लोग हैरान थे कि इतनी हिम्मत,शक्ति उस दुबली पतली लड़की में कहां से आ गई थी।अंधेरा अभी होने में कुछ पल बाकी थे । आस पास से गुजरती दो तीन महिलाएं भी पास आ गई और लगे हाथों उन्होंने भी धुलाई करदी। दोनों उसके बचाने आए साथी भी अब खूब पिट रहे थे। “अरे कम्बख्त जब यह आती जाती लड़कियों,औरतों को छेड़ते,अश्लील इशारे करते हैं तब तुम इन्हें मना क्यो नही करते?”वह महिला पीटना छोड़ दुकानदार के सामने चप्पल लिए खड़ी थी।। “मैं तो,मैं तो…’ क्या मिमिया रहा है अब? अपनी इस टपरी में सिगरेट,गुटका बेचने की आड़ में तुम इन नाजायज हरकतों को शह देते हो? कहते हुए चप्पल उस पर बरसने लगे। वह दुकान छोड़ भागा। किसी के फोन पर पुलिस आ गई और इन लोफरों को पकड़ ले गई।
और वह,वह अपने रास्ते पर मुस्कुराते हुए कब की आगे बढ़ चुकी थी। आज का दिन बहुत अच्छा बीता था।उसकी उंगलियों में नगीने झिलमिला रहे थे।
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डॉ संदीप अवस्थी,शिक्षाविद,
यूजीसी नेट,पीएच-डी, दूसरी
मानद पीएच-डी हिंदी,डीलिट
विभिन्न विषयों पर आठ किताबें,प्रमुख पत्रिकाओं हँस, समकालीन भारतीय साहित्य,नया ज्ञानोदय,मधुमती,हरिगन्धा,अक्षरा आदि में रचनाएँ। कई कविताओ, कहानियों का मराठी,नेपाली,अंग्रेजी में अनुवाद,फ़िल्म लेखन
देश विदेश से पचास से अधिक पुरस्कार,सम्मान।
निजी विश्वविद्यालय में कार्यरत ।
66/26 न्यू कॉलोनी,रामगंज,अजमेर,305001
मो 7737407061
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