झड़प (लघु कथा)
थियेटर का आखिरी शो होते होते आस पास एक स्तब्ध सा अंधेरा फैल रहा था। दर्शकों का समूह कच्चे रास्तों से होकर बस्तियों की ओर रवाना होने लगा। इसी बीच पीपल चौराहे पर हाथ पांव कमीजों से कसने लगे। दूर से लगा जैसे चार पांच लोग बीच बाज़ार कुश्ती पर उतारू हो गए हों। एक आदमी भागता हुआ थियेटर की दिशा में लौटा और सायकल का पुराना ट्यूब उठाकर वापस चौराहे की ओर भागा। सब फरार हो चुके थे।
हारा हुआ आदमी कितना व्याकुल होता है। एक परास्त सिपाही मुठ्ठी में रेत लेकर सागर को गर्त में डूबाने दौड़ पड़ता है। ऐसी पराजय में गर कहीं कोई अन्याय पैठा हो तो छटपटाहट बहुत कुछ करवा बैठती है। सही हथियार हाथ लगे तो ऐसे समय में झड़प भयावह रूप ले लेती है। किसी बेंत मार घुड़सवार की तरह वह अंधेरे को देखने लगा। जैसे उसके चोरी कर भगाए गए घोड़ों को लूटने वाला घोड़ों की जिन लूटने फिर से वापस आएगा।
एक लंबे अंतराल तक वह हाथ में ट्यूब लिए घूरता रहा फिर एक निष्पाप वेश्या की तरह उसने कोतवाली की ओर चलना शुरू किया। कोतवाली के बाहर सरकार ने गैस लैंप लगवाई हुई है। लैंप की रोशनी चार बांस और चौबीस गज तक अपराध रोक लेती, इसके आगे भाग्य की कोठरी में कर्म का काल खण्ड श्याम पट सा दीपता था। कोतवाली में पृथ्वी महतो बतौर प्रभारी विराजमान थे। थियेटर के टिकिट कारोबार में उनकी भूमिका विश्व राजनीति में अमेरिका की भांति निष्पक्ष, न्याय मूलक और औसतन समाजवादी ही रहती है।
कोतवाली मर्दों का अहाता है। महतो जाति से तो क्षत्रिय थे लेकिन प्रमाण पत्र पर अनुसूचित का तमगा था। कोई हारा बिफरा क्षत्रिय अनुसूचित सरंक्षण की मांग करे यह महतो के न्यायिक सिद्धांत के प्रतिकूल बैठता था। महतो की मानें तो अनुसूचित क्षत्रियों को न तो आरक्षण की बात करनी चाहिए न ही किसी के प्रति सरंक्षण का रवैया बरतना चाहिए। मानसिक दलितों के प्रति व्यावहारिक उपेक्षा उन्हें थाने के बजाए स्कूल, कॉलेज ले जाएगी। तभी इस देश में समुचित रूप से समाजवाद फलित होगा।
हांफते हांफते श्याम शरण के हाथ से ट्यूब गिर चुका था। हवा निकल जाने पर बहुत कुछ गिर जाता है। आज पृथ्वी बाबू ही उसे इस आत्मीय आक्रोश से उबार सकते हैं। अब तक उसने जो कुछ तीन पांच किया, टिकिटिंग की बारिकियों के हुनर से उसने जो कुछ बनाया उसका एक हिस्सा प्रभारी भी लेते होंगे। हालांकि राजनयिक कारणों से अब तक पृथ्वी बाबू ने श्याम शरण को गले नहीं लगाया था। हर बार देखकर अनदेखा भी किया ताकि कुंजबिहारी चौबे पर जातीय मानस की वर्चस्व शील एकता का खुलासा न हो। लेकिन आज तो जातीय अस्मिता पर पूंजीवाद ने मारण प्रयोग किया है। आज तो पहल करनी ही होगी।
वैसे तो कुंजबिहारी चौबे भले आदमी थे लेकिन अपराधिक कराधान की जनसांख्यिकी के ब्यौरे को लेकर उनका रवैया बेहद उपेक्षा पूर्ण था। श्याम शरण के मानसिक पृथ्वी बाबू और व्यावहारिक थाना प्रभारी के बीच लगभग उतनी ही दूरी थी जितनी साइकल के दो टायर्स के बीच होती है। इसी बीच उसने पहली बार एक मानसिक कुंजबिहारी चौबे का समकालीन आग्रह बुनना शुरू कर दिया। एक समकालीन कुंजबिहारी चौबे राजनीतिक रूप से पारदर्शी, आर्थिक रूप से कृतज्ञ और धार्मिक रूप से गुरू कैटेगरी का आदमी था। अपराधिक कराधान से जन्म लेने वाले शिष्य समुदाय को समय बेसमय कोई संकट न आए, कोई दुख न पहुंचे। थाने के प्रति, प्रभारी के संदर्भ में निष्पाप समर्पण अक्षुण्ण बना रहे इसके लिए जो कुछ संभव हो सकता है सब कुछ एक सीमित से कुंजबिहारी चौबे पर केंद्रित होता गया।
लैंप का धुंधलका अब नज़र आने लगा था। सदियों तक दलितों ने अत्याचार सहा था। लेकिन अब समता के महानायक ने शिव रूप थाना प्रभारी की कुर्सी को सुशोभित किया है। चौबे इस समाजवाद के मौलिक धर्मात्मा हैं, यदि आज बतौर नंदी वो अपनी पूंछ से मेरी बांह पकड़ लें तो पिनाकी के रक्षा प्रसाद में इस गरीब को भी थोड़ी सुरक्षा मिल जाएगी। कोतवाली पहुंचते पहुंचते श्याम शरण की हवा लगभग निकल चुकी थी। अंधेरे में उसने श्रद्धेय चौबे को खोजना आरंभ किया। श्री चौबे थाने के पिछले मैदान में अलाव लगाने की कोशिश कर रहे थे। अपनी सामरिक सत्ता पर लगे आघात से तिलमिलाया एक सच्चा चेला आज सत श्री नंदी के यज्ञ अलाव की ओर याचक की तरह बढ़ने लगा।
ऐसे वालेंटियर को देखकर कुंजबिहारी कराधान पेटी के प्रति समर्पित हो जाते थे। चीर परिचित आग्रह से धूर्त की गुरू भक्ति दीप्त हो जाती है। इसी गुरू भक्ति की क्षत्र छाया में श्याम शरण थियेटर इकॉनोमी का सफल ब्रोकर बन चुका था। झड़प साधारण ही थी, टिकिट महंगा था। थियेटर की हालत औसत थी और सिनेमा का मजमून भी मामूली था। यह सब समझने में चौबे को कुछ क्षण ही लगे होंगे। लेकिन चौबे ने श्याम शरण से आज पहली मर्तबा दो बार पृथ्वी बाबू शब्द सुन लिया था।
अलाव को एकटक देखते हुए कुंजबिहारी भांप गए कि श्याम शरण साहब की राजनीतिक क्षत्रियता के बिज़नेस एथिक्स पर किसी ने दलित होने का मुक्का धर दिया है। चौबे जी की मानें तो जो कुछ हुआ इलाके की एकता, सामाजिकता और बिज़नेस सिक्यूरिटी के प्रति संवेदनशील है। कानों से श्याम शरण ने जो कुछ सुना एक अफसर के जातीय सहपाठी के रूप में एक ब्रोकरेज गुट लीडर की राजनीतिक सफलता का सांकेतिक लक्षण था। संज्ञान हो चुका था, डायरी हो चुकी थी, शासकीय तौर पर, प्रक्रिया आधारित जांच शुरू हो चुकी थी। पृथ्वी बाबू के परोक्ष वरद हस्त के प्रति विभागीय स्वीकृति का गुलदस्ता लिए श्याम शरण थाने से बिदा हो गया।
कुंजबिहारी ने श्याम शरण को भली भांति लीप दिया था। मामले की तह पर पृथ्वी बाबू की लाठी अड़ चुकी थी। ब्लैक के विरूद्ध जड़ा जाने वाला सरकारी घूंसा मुनाफाखोरी की टीस होकर एक ब्रोकर की गाल का रहपट बन गया था। फौजदारी के नियम से ब्लैक रोकना, झड़प को अनदेखा करना, कमीशन बढ़ा देना सब कुछ नामुमकिन था। हां! एक बात मुनासिब थी कि जहां तक हो सके इस मर्दूल्ले को मुनाफाखोरी के हवाले से किनारे लगा दिया जाए। अब तक श्याम शरण पर जातीय अलगाव पैदा करने का आरोप लग चुका था। बतौर सामाजिक संगठक कुंजबिहारी ने इस आरोप को सतही पाया। उन्हें उम्मीद तो नहीं थी लेकिन पृथ्वी बाबू के चेला मण्डल के इस नए सदस्य के संदर्भ में थाना प्रभारी को सूचित करना आवश्यक हो चुका था।
आरोप संगीन था, स्वाभाविक रूप से मोटे रसूखदार की जमानत हो चुकी थी। श्याम शरण जिला बदर वारंटी था। लाख समझाने पर भी उसने ब्लैक का धंधा नहीं रोका। पुलिस दिन रात एक कर उससे निपटने में लगी रही। छुप छुपा कर अपने गुट की मदद से उसने टिकिट की ब्लैक मार्केटिंग जारी रखी। ज्ञात सूत्रों के मुताबिक विगत सांझ आखिरी शो के बाद पैसों के लेनदेन को लेकर गुट आपस में भीड़ गया। श्याम शरण पैसे वसूलने के लिए थियेटर इलाके की ओर आया होगा। गुंडा एक्ट के तहत भी मामला विचाराधीन है। इस दौरान श्याम शरण फरार थाना रिकार्ड में दर्ज रहेगा।
प्रणय धर दीवान
बिलासपुर (छ.ग.