मेरे दोस्त आ
राजेन्द्रो उपाध्यायय
मेरे वे सब दोस्त कहां है अब
जिनके भरोसे काटी थी कभी शिमला की बर्फीली सर्दियां
जिनके साथ देखे थे कुछ मीठे अच्छे सपने
जिनके साथ दूर तक चला था
वे सब किन रास्तों पर कहां चले गए
वे क्या छोड़ गए पहाड़
नीचे मैदान में ना मालूम किन जगहों पर उतर गए
क्या उन्हेंं भी मेरी तरह नौकरी ने दबोच लिया
और उनसे छिन लिए सब अच्छें मीठे सपने
जो हमने साथ देखे थे
कुछ उनमें से मेरी हीत रह होंगे मधुमेह के शिकार
या और किसी छोटी मोटी बीमारी का इलाज कराते होंगे
कुछ हो गए होंगे मेरी ही तरह गंजे
जमानेकोभलाबुराकहते
क्याे उन्हेंं भी मेरी ही तरह वैसी ही आती होंगी याद
जैसी मुझे इस वक्त यह कविता लिखते हुए
आ रही है पहाड़ पर बिता के शोर्य के उन दिनों की
उनमें से किसी ने तो पढ़ी होगी मेरी कविता कभी
और अपनी बीवी को दिखाई होंगी कि यह कवि
कभी एक लड़का था और मेरे साथ पढ़ता था
उन सबके अब बीवी बच्चे होंगे
उन सब के मां बाप अभी भी होंगे
या इन दोनों में से कोई एक उनको छोड़ गया होगा।
इस जमाने में इतने लोगों ने मुझे खोज निकाला
पर उन पांचों ने मुझे क्यों अब तक ढूंढा नहीं
क्या उनके साथ अब नहीं वो फोटो
जो शिमला के एक स्टूडियों में हमने हाथों में हाथ लेकर खिंचाया था।
कि रहेगा या कि कभी हम सब दोस्त थे
पर मुझे उनकी याद आ रही है
पर उनको क्यों नहीं मेरी याद आ रही है?