November 21, 2024

राजेन्द्रो उपाध्यायय

मेरे वे सब दोस्त कहां है अब
जिनके भरोसे काटी थी कभी शिमला की बर्फीली सर्दियां
जिनके साथ देखे थे कुछ मीठे अच्छे सपने
जिनके साथ दूर तक चला था

वे सब किन रास्तों पर कहां चले गए
वे क्या छोड़ गए पहाड़
नीचे मैदान में ना मालूम किन जगहों पर उतर गए

क्या उन्हेंं भी मेरी तरह नौकरी ने दबोच लिया
और उनसे छिन लिए सब अच्छें मीठे सपने
जो हमने साथ देखे थे

कुछ उनमें से मेरी हीत रह होंगे मधुमेह के शिकार
या और किसी छोटी मोटी बीमारी का इलाज कराते होंगे
कुछ हो गए होंगे मेरी ही तरह गंजे
जमानेकोभलाबुराकहते

क्याे उन्हेंं भी मेरी ही तरह वैसी ही आती होंगी याद
जैसी मुझे इस वक्त यह कविता लिखते हुए
आ रही है पहाड़ पर बिता के शोर्य के उन दिनों की

उनमें से किसी ने तो पढ़ी होगी मेरी कविता कभी
और अपनी बीवी को दिखाई होंगी कि यह कवि
कभी एक लड़का था और मेरे साथ पढ़ता था

उन सबके अब बीवी बच्चे होंगे
उन सब के मां बाप अभी भी होंगे
या इन दोनों में से कोई एक उनको छोड़ गया होगा।

इस जमाने में इतने लोगों ने मुझे खोज निकाला
पर उन पांचों ने मुझे क्यों अब तक ढूंढा नहीं
क्या उनके साथ अब नहीं वो फोटो
जो शिमला के एक स्टूडियों में हमने हाथों में हाथ लेकर खिंचाया था।
कि रहेगा या कि कभी हम सब दोस्त थे

पर मुझे उनकी याद आ रही है
पर उनको क्यों नहीं मेरी याद आ रही है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *