धरा का प्यार
पत्तों ने पूछा धरा से ।
दादी, तुमने पिता वृक्ष को जन्म दिया ।
पिता वृक्ष ने हमें जन्म दिया ।
पर हमने ऐसा क्या गुनाह किया,
कि पिता वृक्ष ने हम पत्तों को त्याग दिया।
धरा ने बड़े प्यार से,
पत्तों को पुचकारा।
उन्हें बड़े प्यार से,
सजल नयनों से निहारा ।
बच्चों तुम सब मुझसे,
इतने ऊपर रहते हो कि,
मैं तुम्हें छू नहीं पाती।
आगोश में अपने प्यार से,
मैं तुम्हें ले नहीं पाती ।
इसीलिए मैंने तुम्हारे पिता को,
आदेश यह दिया है ।
उसी आदेश का पालन,
तुम्हारे पिता ने किया है ।
वसंत आते ही,
तुम बच्चों को मुझे सौंप दो।
मैं इनसे स्नेहपूर्वक खेलूंगी ।
वस्त्र इन्हें नया पहनाकर,
वापस पुनः तुम्हें सौंप दूंगी ।
बच्चों, तभी से,
चला यह सिलसिला है।
और जन्म-जन्मांतर से ,
प्यार मुझे तुम्हारा मिला है ।
स्नेह और प्यार से लबालब ,
धरा की आँखों में आँसू थे ।
पाकर दादी का प्रगाढ़ प्रेम ,
पत्तों की आँखों में आँसू थे ।
देख प्यार की यह निश्छल गंगा ,
वृक्ष की आँखों में आँसू थे ।
त्र्यम्बक राव साटकर ” अम्बर “