लता जौनपुरी की दो गज़लें
गज़ल 1
छोड़ आए वो हसीं घर याद आता है
कि जैसे क़ैद में पंछी को अंबर याद आता है
विदा के वक़्त तेरे लब पे थी इक मुस्कराहट , पर
तेरी पलकों पे ठहरा था जो गौहर याद आता है
मिलन के वक़्त पहली बार पहनाया था जो तूने
मुझे अब भी तेरी बाहों का ज़ेवर याद आता है
नहीं थी ख़ुद के सर पर छत मगर थी फ़िक्र लोगों की
मेरी बस्ती का वो बूढ़ा क़लंदर याद आता है
जहाँ ने फेर कर नज़रें किया था चाक मेरा दिल
रफ़ू जिसने किया था वो रफ़ूगर याद आता है
पिया के गाँव में रहतीं हैं ख़ुशियों की बहारें, पर
मुझे तो रोज़ ही अपना वो पीहर याद आता है
कि झूठों ने नहीं छोड़ा असर गहरा दिल-ओ-जाँ पर
लुटा जो सच बयानी से वो अक्सर याद आता है
जुदा जब हो रहे थे हम फ़क़त रोज़ी की ख़ातिर, तब
बहा था मां की आंखों से जो सागर याद आता है
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गज़ल 2
यूँ तो रस्ते में पड़ा पत्थर किसी काबिल नहीं
देवता उसको बनाना पर बहुत मुश्किल नहीं
पी के प्याला ज़ह्र का वो मुस्कराकर कह गई
थी कभी दुनिया हसीं पर अब मेरे काबिल नहीं
जीत लेगा तू जमाने को निहायत प्यार से
है यकीं मुझको ज़माना इतना भी बेदिल नहीं
क्यों न हो हमको शिकायत इस तरक्की से हुजूर
जिस तरक्की में कोई मज़दूर ही शामिल नहीं
हम हैं गौहर के दीवाने रखते हैं पक्का जुनूँ
ढूंढ ही लेंगे उसे मज़िल मेरी साहिल नहीं
अपने ख्वाबों के फलक़ पर है सदा मेरी नज़र
बस ज़मीं पर चलते रहना ही मेरी मंज़िल नही
लता जौनपुरी
B-35
सुखमय विहार
लेन न0 -2
चांदमारी, वाराणसी
221003
उत्तर प्रदेश
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