1 जुलाई, 2021 को 101वें जन्मदिवस पर : सृजनधर्मी साहित्यकार और पत्रकार-पं. स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी
श्रीमती सीमा चंद्राकर
छत्तीसगढ़ में बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में साहित्य और पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीयता की अलख जगाने वालो में अग्रणी नाम है-पं. स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी का। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी करते हुए सामाजिक और राजनीतिक नवजागरण आंदोलन में भी भूमिका निभाई थी।
पं. त्रिवेदी असाधारण प्रतिभा के धनी तथा इन्द्रधनुषी व्यंितव वाले रचनाकार थे। उनका संपूर्ण जीवन राष्ट्र तथा हिंदी के हित में होम हो गया। मोम की भांति तिल-तिल जलकर जग को आलोकित कर सकने का उनमें अदम्य साहस था। उनका व्यंितव महान था। उनका आचार-विचार रहन-सहन, उनका स्वभाव उनकी संवेदनशीलता, उनकी सादगी, उनकी उदारता उनके जीवन के दुर्लभ गुण थे। जो भी उनके संपर्क में आता उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता।
पं. त्रिवेदी जी का जन्म 1 जुलाई सन् 1920 को हुआ था। समय तिलक युग तथा गांधी युग था। अतः उनके व्यंितव और कृतित्व में स्वतंत्रता, राष्ट्रीयता, देशभक्ति तथा स्वदेशी भावना के तत्वो ंका समावेश था। त्रिवेदी जी पर गांधीवाद और राष्ट्रवाद का गहरा प्रभाव रहा। वे मध्यप्रदेश विशेषकर छत्तीसगढ़ क्षेत्र की पुरानी पीढ़ी के उन लोगों में से हैं, जिन्होंने साहित्य और पत्रकारिता दोनों के माध्यम से एक साथ सामाजिक चेतना फैलाते हुए स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा प्रदान करने में सहयोग दिया।
परिवेश एवं राष्ट्रवादी पारिवारिक वातावरण में पं. त्रिवेदी जी ने अपने कृतित्व का सफर शुरु किया। बचपन से ही वे अध्ययन प्रेमी थे। बाल साहित्य, अंग्रेजी, हिंदी साहित्य के अध्ययन में उनकी रूचि रही। सन् 1933 से अपने लेखन की शुरूआत करने वाले त्रिवेदी जी ने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में सृजन किया पर मूलतः उनका रूप कवि का है। उनकी कविताओं का मूल स्वर राष्ट्रीय है। वे साहित्य और पत्रकारिता के पथ पर चलकर सीधे राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ जात ेहैं।
पं.स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी ने सन् 1942 की क्रांति को कविताओं में कई आयामों में अभिव्यक्त किया है,
‘ब्यालीस का संघर्ष‘ शीर्षक कविता सन् 1942 की क्रांति पर लिखी गई है, इसमें त्रिवेदी जी ने स्वतंत्रता संग्राम में आम जनता की सहभागिता और गांधीजी के प्रभाव का वर्णन किया है। त्रिवेदी जी की कविताएँ जमीन से जुड़ी हुई हैं, उन्होंने अपनी कविताओं में गुलाब, शंकर, भोला जैसे उन सामान तरुणों की राष्ट्रीय सेवाओं को भी रेखांकित किया है, जो कि अब किसी की स्मृति में नहीं हैं। इसी तरह‘ बलिपथ का इतिहास‘ एक ऐसी काव्य रचना है, जो राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत है, तथा उन शहीदों का गाथागान है जिन्होंने देश के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया।
देश को आजादी दिलाने में साहित्यकारों का विशेष योगदान रहा है। इतिहास गवाह है कि कलम के सिपाहियों ने जोराष्ट्रीय चेतना की अलख जगाई उसकी मिसाल हिन्दीभाषा और साहित्य में है। त्रिवेदी जी की कविताओं में वे जोश है, जो नौजवानों को देश के लिए मर मिटने को प्रेरित करती रही है। उन्होंने युवकों को प्रेरणा देते हुए उनमें आजादी का जोश भरने का भरपूर प्रयास किया।
त्रिवेदीजी का मानना था कि जब तक युवा त्याग और बलिदान के लिए तैयार नहीं रहेंगे, तब तक सफलता नहीं मिल सकती। उनके इन मनोभावों को ‘बलिदान न कोई रोक सका‘ कविता में स्वतःही देखा जा सकता है।
पं. त्रिवेदी की प्रारंभिक कविताएँ अंग्रेजों के अत्याचार, आतंक और जनविरोधी भावनाओं के कारण प्रस्फुटित हुई। समय के साथ-साथ वे स्वयं चलते रहे तथा भारत माँ की दासता की बेडियाँ काटने में उनकी कविता रूपी तलवार ने पूर्ण सहयोग दिया है। वे सजग प्रहरी के समान अपनी कविताओं के माध्यम से देश को निद्रा से जगाते रहे। इस तरह राष्ट्रीय चेतना जगाने में एक कवि तथा साहित्यकार के रुप में पूर्ण योगदान दिया।देश को आजादी दिलाने में जो योगदान मैथिलीशरणगुप्त, सुभद्राकुमारी चैहान, रामधारी सिंह दिनकर आदि राष्ट्रीय कवियों का है, वही योगदान पं. स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी का भी है।
यह उल्लेखनीय है कि त्रिवेदी जी के पत्रकार जीवन का प्रारंभ सन् 1936 में ‘आलोक‘ पत्रिका से हुआ था। बाद में सन् 1942 में वे छत्तीसगढ़ के एक सबसे महत्वपूर्ण साप्ताहिक पत्र ‘अग्रदूत‘ के सहयोगी सम्पादक बनें। सन् 1946 में रायपुर से साप्ताहिक ‘महाकोशल‘ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ तो वे उसके सम्पादक बनें। ‘महाकोशल‘ में छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय जागरण, सामाजिक परिवर्तन और सांस्कृतिक पुनरूत्थान की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया था। यही ‘महाकोशल‘ सन् 1951 में छत्तीसगढ़ का पहला दैनिक समाचार पत्र बना और त्रिवेदी जी इसके प्रथम सम्पादक बनें। वे सन् 1954 में शासकीय सेवा में आए और जनसम्पर्क के क्षेत्र में कार्य करते हुए विकास, संचार के नए मापदंडों की स्थापना करते हुए। त्रिवेदी जी सन् 1978 में शासकीय सेवानिवृत्त होने के बाद फिर से ‘महाकोशल‘ के सम्पादक से जुड़े और फिर ‘अग्रदूत‘ से । उनका देहावसान 11 जुलाई सन् 2009 को हुआ था। वे जीवन के अंतिम काल तक, ‘अग्रदूत‘ के सलाहकार सम्पादक रहे। त्रिवेदीजी ने छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता को दिशा दी और लगातार पत्रकारों की तीन पीढ़ियों को मार्गदर्शन दिया। इसीलिए कुछ विश्लेषक त्रिवेदीजी को पत्रकारिता की पाठशाला जैसी संस्था के रूप में सम्मान देते हैं।
पं.स्वराज्य प्रसाद त्रिवेदी एक ऋषितुल्य थे, उनमें पत्रकार, संपादक, समाजसेवक और देशभक्त का समुच्चयी सामंजस्य विद्यमान था।
सहायक प्राध्यापक
गुरुकुल महिला महाविद्यालय
रायपुर (छ.ग.)