दिव्या सक्सेना की दो कविताएं
आँखों की नमीं
बहुत कुछ बयाँ करती है
आँखों की नमीं
ये तो पढ़ने वाले ही समझते है
इसकी गहराई
सुनामी की आहट देती हुई
हलचल मचा देती है
जो मन के सागर में भी,
थम गई थीं नज़रे उस वक्त दोनों की
जब कर रही थी संवाद आँखों की नमीं,
लफ्ज़ खामोश होंठ सिले थे
चुप रहना ही मुनासिब समझा
जब दोनों ने
क्योंकी एहसासों के समंदर में
ना चाहते थे दोनों कंकर फैंकना
वो कुछ भी कह कर एक दूसरे से,
आँखों की आँखों से
इस गहरे संवाद की बैला में
जब दोनों बहने लगे और तर बतर होने लगे
साथ साथ इस भीगने में बहने लगे थे भाव भी और बहते बहते जीवन के तट पर
जब मन,हृदय,आत्मा का हुआ संगम
तब एकनिष्ठ ‘त्रिवेणी’
प्रेम स्वरुप में अवतरित होकर
बहने लगी जीवन की वसुंधरा पर।।
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इत्तेफाक
वो सहर वो शाम नहीं आई
वो खूबसूरत ख्वाबों वाली चंदनी रात नहीं आई
भागती रही जिंदगी रेस के मैदान पर
सुकून से बैठ सके संग में दोनों कभी
गुलशन में वो बहार नहीं आई,
सज़दे किऐ हैं तुम्हें पाने को इतने
मगर ये बात कभी जुबां पर ना आई
मिजा़ज खुद्दारी का तबीयत में वफादारी
हर सितम पर तुम्हारे बस आँख भर आई,
कुछ कह दूँ तो खता होगी हमारी
चुप रहने से तो खामोशीयाँ भी शरमाई,
आजा़द तुम हो आजा़द हम हैं
जब इश्क के वादों पर बंधने की कोई बात ना आई,
ये तो खूबसूरत इत्तेफाक हैं
कि हम मिले भी ऐसे कि ना तुझे याद आई
और ना हमने आवाज़ लगाई।।
दिव्या सक्सेना
कलम वाली दीदी
ग्वालियर(म.प्र)