आज बाबा नागार्जुन को याद करते हुए :
-सरला माहेश्वरी
बाबा मैंने सपना देखा !
घर में बैठे पास हमारे खिलखिला रहे हो तुम !
सत्य को लकवा मार गया है कहकर
उदास हो गये तुम !
नेता का माथा फुटबॉल हो गया है !
देखो ! देखो !
बुला रहे हो तुम !
लॉकडाउन में आम बेच रही आठ साल की तुलसी को
ऑनलाइन पढ़ाई के लिये कब
मोबाइल मिलेगा पूछ रहे हो तुम
झोले में से कुछ
काग़ज़ निकाल रहे हो तुम
होले-होले मुस्कुरा रहे हो तुम !
हँसी में खिली-खिली तुम्हारी बातें बाबा
गुस्से के गरम तेल में
तली हुई तुम्हारी बातें !
अचानक ज़ोर ज़ोर से कविता पढ़ने लगे हो तुम
‘कल्पना के पुत्र हे भगवान
चाहिये मुझको नहीं वरदान
दे सको तो दो मुझे अभिशाप
रहूँ मैं दिन-रात ही बेचैन
आग बरसाते रहे ये नैन’
आँखों पर ठंडा-ठंडा हाथ तुम्ह्रारा !
प्रतिबध! सम्बद्ध ! आबद्ध ! साथ तुम्हारा !
ये तुम ही थे बाबा !
सरला माहेश्वरी