सुप्रिया शर्मा की कविताएँ
“देश की बेटी”
मुझमें जुनून है,
हिम्मत है,हौसला है।
ऐसी कोई डोर नहीं,
रोके जो पतवार को।
मैं बढ़ चली,
मैं पढ़ चली,
अपनी उमंगों पर खुद चल पडी़।
मुझमें साहस है,
हिम्मत है,जुनून है।
मैं देश की बेटी हूँ।
हर क्षेत्र में पताका मेरी।
आसमान में उड़ती हूँ।
पहाडो़ पर चढ़ती हूँ।
अकेले ही चल पड़ती हूँ।
जल के रास्ते,
कितनें ही देश नाप दिए।
मैं वीर हूँ ,मैं तेज हूँ।
जलती हूँ मैं अपने ही तेज़ से।
सूर्य भी खुश होता है,
जब देखता मेरे तेज़ को।
बढ़ती हूँ हर राह पर।
मैं देश की बेटी हूँ।
गर्व है मुझे मैं एक बहादुर हूँ।
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तेरे हवाले किया,हर व्यवधान को
तेरे हवाले किया,हर व्यवधान को।
ये जिंदगी,हम तो बढ़ चले हैं।
नई उमंग के साथ।
तेरे हवाले किया,
ये जिंदगी,हर ठोकर को।
हम तो बढ़ चले हैं।
एक नए सबक के साथ।
तेरे हवाले किया,
ये जिंदगी,हर आँसू को।
हम तो बढ़ चले।
एक नई मुस्कुराहट के साथ।
तेरे हवाले किया,
ये जिंदगी,शिकायतों का पिटारा।
हम तो बढ़ चले।
नऐ उल्लास के साथ।
तेरे हवाले किया,चिन्ताओं का पिटारा।
हम तो बढ़ चले ,बेफिक्री के साथ।
ये जिंदगी मजा़ आने लगा है।
तेरे साथ चलने में।
जहाँ तू वहाँ हम।
कितनी भी लगे ठोकर।
कदम आगे ही बढा़एगें।
ये जिंदगी हम तुझसे नज़रें मिलाऐगें।
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आहत कितना हुए कोविड से
आहत कितना हुए कोविड से।
कितने बिछडे़,कितने छूटे।
आहत कितना हुए कोविड से।
अब क्या है आलम देख धरा का।
मानव मैं हिम्मत भारी।
लोगों का रोजगार गया।
उत्सव को भी बंद किया।
घर में बैठे संतोष किया।
आहत कितना हुए कोविड से।
बंद हुए स्कूल सभी के।
बच्चे सिमट गए स्क्रीन पर।
न मिलना,न जुलना।
शरारतों का दौर छूटा।
सहपाठी से था मिलना।
पर कोविड ने सब रोक दिया।
आहत कितना हुए कोविड से।
पीपीई किट का दौर चला।
दुगनी ताकत झोंकी डाक्टर्स ने।
अपना कार्य मुस्तैद किया।
आहत कितना हुए कोविड से।
जन-मानस एक हुआ।
संयम का मान रखा।
ईश्वर में श्रद्धा और बडी़।
आहत कितना हुए कोविड से।
दीपक जले,चिराग बुझे।
अभी तो देखना था और सावन।
पर किसका जोर चला।
आहत कितना हुए कोविड से।
सुप्रिया शर्मा