अजीब सी चुप्पी तो है
अजीब सी चुप्पी तो है
पर इशारा करती है
छुपा है कोई तूफान वक्त के सीने में
उखाड़ फेंकने को आतुर हैं हाथ
कंटीले नागफनियों को
जिसने निगल लिए हैं
अनाज के हजारों हजार खेत
करेंगे ये कुठाराघात
खाये पीए अघाये लोगों के
सौंदर्यबोध के दिखावटी समझपर
उगाएंगे जरूर वे इनकी जगह
पिचके उदास गालों पर हंसी
उतारेंगे पेड़ो पर बची हुई रस्सी
और बांध देंगे इन रस्सियों से
जुगाली करते
सफेद भस्मासुरों को
ताकि दें सके वे
जीवित होने का प्रमाण पत्र
अपने आपको.
-सरोज यादव