डॉ. सविता सिंह की दो कविताएं
रश्क होता है!
प्रकृति से मुझे रश्क होता है!
कभी-कभी जब देखती हूं,
आसमान के रंगों को तब।
महसूस होता है कि बिना रंग, बिना ब्रश के ,
इतनी खूबसूरत पेंटिंग बनाने वाले ,
हे प्रभु! आप महान हो!
कितना गुमान है ,लोगों को अपने ऊपर!
क्योंकि वह अपनी नज़र उठाते ही नहीं!
यदि प्रकृति को लगें देखने,
मेरी तरह दिल से…..
तो उन्हें भी रश्क होने लगेगा प्रभु से!
इतना बड़ा कलाकार कोई दूजा नहीं!
प्रभु हर तरफ बस आप ही आप हो ,
कोई साझा नहीं !
इसीलिए रश्क के बाद ,
इश्क होना लाज़िमी है!
हथेलियां जुड़ गई हैं,
आसमां की तरफ,
आपके वंदन में !!
डॉ.सविता सिंह
पुणे।
4/6/21
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धूप और छांव – (जीवन दर्शन)
जीवन की धूप में खुद को तपाओ,
पाओगे कि तुमने जीवन का मार्ग
खुद से पा लिया।
बिना गिरे कभी खड़े हो पाओगे?
बिना चूके तीर निशाने पर लगा पाओगे?
बिना धोखा खाए कभी संभल पाओगे?
बिना कांटो के गुलाब खिल पाएंगे?
फिर बिना उतार – चढ़ाव के
जीवन कैसे संभव हो पाएगा?
ईश्वर तक जाने वाले मार्ग पर
भला कैसे पहुंचा जाएगा ?
बिना असफल हुए सफलता पा सकोगे?
सारे लोग अच्छे ही हो जाएंगे
तो बुरे लोगों का स्वाद चख पाओगे!
जीवन में आए हुए सभी तरह के लोग, परिस्थितियां हमें कुछ ना कुछ सिखाती हैं!
इन सीखों के बगैर जीवन के रास्ते कभी पूर्ण कर पाओगे ?
जब रास्ते पूर्ण नहीं होंगे तो ईश्वर की प्राप्ति कैसे कर पाओगे?
इस दुनिया में जन्म से लेकर
मरण तक जो कुछ भी पाया उसे बिसरा पाओगे?
वह सब हमें कुछ ना कुछ
देकर ही तो गए हैं ना!
वही सब हमें ईश्वर के द्वार तक पहुंचाएंगे ना!
भला आप ही बताओ कि इसमें किसे गलत और किसे सही कहोगे आप ?
सब कुछ सही ही है क्योंकि सबने हमें कुछ ना कुछ
दिया ही तो है!
आइए, सजग होकर जीवन पथ पर आने वाले दोषों का भी स्वागत करें और अच्छे कर्मों का भी !
क्योंकि बिना रात- दिन नहीं और बिना दोषों के गुण नहीं!
हे मानव ! जान ले तू आज इस बात को,
बिना द्वैत- अद्वैत नहीं ,बिना भूल – सुधार नहीं ,बिना गिरे- उठेंगे कब?
फिर अफसोस किस बात का ?
ईश्वर तक पहुंचना है ?
निश्चित ही इन सबसे गुजरना है!
डॉ.सविता सिंह
पुणे।