निवेदन (कहानी)
किस तरह टूट कर बिखर गया मैं तुम्हारे प्यार में! पीपल के नवांश पत्तों की तरह भावोन्मेष के रोमांच से जब दिल धडक रहा था।एक गरजती आवाज ने सब खत्म कर दिया। हवा क्यों शुष्क हो गयी… ?नदी कैसे सूख गयी… ?आसमान कैसे मट-मैला धूसर हो गया…? यह तुम मुझसे क्यों पूछ रही हो? खुद से पूछो! किसकी नाक कट गयी? कैसी नाक कट गयी? जमाना हो गया।हर एक की नाक अपनी जगह पर दुरुस्त है। तकरीबन बीस वर्ष नौकरी के जोड़ दो, तो पैंतालीस वर्ष! मुझ पर दुबारा दबाव का हक तुमको, भैय्या को, भाभी को और मुझको भी कहाँ है? हर आदमी के भीतर एक आदमी है, जो दूसरे से भिन्न है, उस पर किसी का अख्तियार नहीं, अगर वह गलत था, तो मैं खुद को सजा दे रहा हूँ, उन्हीं आरोपित नैतिकताओं और मर्यादाओं के लिए… कि कल यह गलती कोई नहीं करे… और अगर मैं गलत नहीं, तो यह उन लोगों के लिए सबक है, जो एक मानवीय बात के खिलाफ आसमान सिर पर उठा लेते हैं… ऐसा क्या हो गया था, जिसके लिए भाभी रो रही थी? भाई आपे से बाहर हो गए थे?जलालत के महसागर में डूबा मैं फिर भी अपनी आत्मा की आवाज सुन सकता था,जिन स्थितियों से गुजर कर दो दुनियाएँ जुदा हुईं ,वह नैतिक है, तो फिर अनैतिक क्या है? बोलो, जवाब दो? मैं अगर पानी का बादल होता तो फट जाता उस दिन, बहे जिन चीजों, मूल्यों, विचारों को बहना हो….
… तुम्हें याद होगा मैंने बड़े भैय्या के उस गुस्से के बाद भी तुम्हें पत्र लिखा था इस इल्तिजा के साथ कि अगर मेरा यह पत्र नहीं पढ़ा गया, तो मेरा दिल हजार टुकड़ों में टूट कर बिखर जाएग, फिर तुम चाह कर भी उसे समेट नहीं पाओगी… वैसा ही हुआ… प्रेम को खेल समझ कर उम्मीदों को तोड़ना इतना आसान नही है… बाद में बड़े भैय्या को बहुत पछतावा हुआ… उन्हौंने कितनी आरजू-मिन्नत की… अपने खयालों में गल रहे हैं… पर जिस उम्मीद का ऐतबार तुमसे था वह तो तुमने भी भुला दिया… अब भैय्या को दोष दूँ कि तुम्हें? नहीं, अंजलि मैं दोष किसी को नहीं दूँगा, अपने भाग्य और प्रारब्ध को भी नहीं ,आज फिर तुम्हारा पत्र आया है कि मैं शादी कर लूँ। यह भी कि तुम्हें अपराध-बोध होगा, अगर मैं ऐसा नहीं करूँगा… यह प्यार नहीं है एक बेजा दुनियावी धमकी है…विवाह का अब मेरे जीवन में विशेष अभिप्राय नहीं है, तुम्हारे प्रति तो एक आकर्षण था, खिंचाव था मन का… पर अब जो होगा वह एक आयोजन के सिवा क्या होगा जीवन में!
वह उम्र भी बीत गयी।
मैं एक सितारा हूँ, जो परियों के देश में अब अपनी आग से जल रहा है। तुम्हें क्या कहूँ….एक दिन हमारी बैचमैट सुपर्णा ने कहा कि रवि विवाह नहीं करना,अगर एक लाइफ स्टाइल है, तो मुझे यह तिलिस्म जादुई लगता है किसी पुरुष के लिए… अक्सर इस फैसले का शिकार औरत होती है, फिर तुम्हारे साथ क्या दिक्कत है? मैं तुम्हें शादी के लिए प्रपोज करती हूँ…. जानती हो अंजलि वह इन्तजार करती रही, पर मुझमें कोई हसरत पैदा नहीं हुई!
….
पहली बार जब तुम भाभी के साथ आयी थी, तो उन पाँच-सात दिनों में एक दुर्निवार आकर्षण तुम तक खींच ले गया था। तुमने भी मौन सहमति देकर मुझे दुस्साहस से भर दिया था, फिर जाने कैसे हमारी आँख-मिचौली को भाभी ताड़ गयी थी…..
भैय्या नौकरी में थे, तो उनका रूतबा था।
मगर मैं बेकार मारा-मारा फिर रहा था। इसे इत्तेफाक कहा जाए कि इतने विध्वंस के बाद उसी साल मैं प्रशासनिक सेवा में चुन लिया गया था। भैय्या खुश भी थे और परेशान भी।फिर जब वक्त गुजरने लगा और उन्हें मेरे फैसले का आभास होने लगा, तो वे खूब राये। साॅरी तक कहा। मगर मैं जिस दुनिया में था, वहाँ से कोई कभी नही लौटता।भैय्या और भाभी गहरे अवसाद से भरे रहे।उन्हौंने मुझे थप्पड़ मारा था।घर से निकालने तक की धमकी दी थी, आवारा…. बेहया कहा था!पर अचानक उनके स्वभाव की तब्दीली पर मुझे आश्चर्य होता था। मैं चाहता हूँ कि वे उसी तरह बिगडें, पर भाई का दुख झड़ता है अतीत के किसी कोने से…
” अंजलि में ऐसा क्या था….”भाई बुदबुदाते हैं,” ओह मैं भी कितना पागल था….”
काश! तुम इस दरवेश के रूह की सदा समझती, तो आज भैय्या को भी इतना मलाल नहीं होता….रही बात मेरे दर्द की, तो जीवन रूपी महासमुंद में बहती हुई मेरी नाव एक अजनबी दुनिया में ले आयी है मुझे… यह शहर बेखुदी के संगीत में डूबी एक ऐसी जगह है, जहाँ करोड़ों टूटे कांच को जोड़ कर एक शीशे का लोकेशन बनाया गया है। हजारों परियों का मेला लग रहता है, हजारों कल्पनाएँ और सपने..तुमसे बता रहा हूँ, तुम भैय्या और भाभी से मत कहना… यहाँ कुछ पल के लिए खोयी हुई चीज मिलती है… मेरे जैसे हजारों लोग यहाँ इसी उम्मीद में आते हैं, काबा-ए-दिल!
.. जानती हो जहाँ मैं तुम्हारा इन्तजार करता हूँ, वहीं बगल में एक लड़की एक दिन बेजार रो रही थी, उसकी रुलाई में एक नदी रो रही थी। यह कुछ पल की एक अनोखी मुलाकात थी,जिसमें लड़की कह रही थी,” हम अगले जन्म में जब मिलेंगे, यह दुनिया बदल जाएगी… फिर किसी को यहाँ आने की जरूरत नहीं होगी।”
… पर लड़का कह रहा था,” अगले जन्म में मेरा विश्वास नहीं…”
लड़की की हिचकियाँ थम नहीं रही थी,” सिर्फ एक बार मेरा दिल रखने के लिए, कह दो न?”
“नहीं, मैं झूठ नहीं बोलूँगा।”
…
… अंजलि मैं भी झूठ नहीं बोलूँगा। जब इस अजीब अजनबी जगह पर तुम मिल ही जाती हो, तो विवाह करने का कोई मतलब नहीं रहा? हाँ कोई यह कह कर जलील नहीं करे कि किसकी देह में किसकी देह … किसके प्रेम में किसका प्रेम खोज रहा हूँ…
पुनश्च,
… जानती हो सुपर्णा पहले बहुत रोती थी, पर जिस दिन से वह उस दुनिया में गयी ,उसका रोना थम गया! अब वह सूखी जिंदगी फिर से सरस हो रही है…
….
फिर तुम्हारा पत्र?। गहरे ऊहापोह में खोल रहा हूँ… तुमने लिखा है कि मैंने बेसिर-पैर की बातें की हैं…. सब कोरी कल्पना है मेरी… असल में एक प्रतिक्रिया में मैं अपने जीवन के साथ गलत बर्ताव कर रहा हूँ…प्रेम नहीं जीवन महत्तर है, भैय्या-भाभी ठीक कह रहे हैं…. तुम विवाह करो, पहेलियाँ मत बुझाओ…अपने स्वास्थ्य का ख्याल रक्खो!स्त्री के जीवन में कोई फैसला उसका नहीं होता।सदियों से उसकी आत्मा में समाज का डर बैठा है… पता नहीं तुम लोग कितनी उम्मीद कर बैठते हो कि …. मैंने कब तुमसे प्रेम किया? क्या तुम चाहोगे कि मैं अपने पति और बच्चे को छोड़ कर तुमसे विवाह कर लू?अनैतिक वह नहीं था जो लड़कपन में हमारे -तुम्हारे बीच हुआ, बल्कि अनैतिक यह कि एक शादी-शुदा औरत को तुम चाहते हो…शराब पीकर एक गंदी दुनिया में नाचते। ऐश करते हो, फिर उस फंतासी में प्रेम को दार्शनिक आभा-मंडल प्रदान कर आनंदित होते हो… यह क्यों नहीं कहते हो कि सुपर्णा से तुमने शादी कर ली है, या फिर उस दोस्ती में, प्रेम में शादी जैसे तुम्हारे रिश्ते हैं। सुनो, शार्दूल अगर भैय्या-भाभी एक्सपोज नहीं भी हुए होते, तो वापस आकर मैं तुम्हें भूल सकती थी, बात मत बढ़ाओ, उन्हें अपना आत्म-छद्म बता दो… तुम्हें पता है मेरा बेटा चौबीस साल का हो गया है….
माँ हो तुम! कितना ममत्व भरा है तुममें…मैं जानता हूँ इतनी अवमानना मेरे लिए तुम्हारे मन में नही हो सकती, भले ही कोई दूसरा कहे कि चाकू को कत्ल का अहसास नहीं होता। पानी से धो दो, तो खून के दाग नहीं दिखते।दुनिया की सबसे सुंदर चीज किसी की प्रेमिका ने ही जलाई होगी। तब भी मैं कहता हूँ तुमने सच्चे दिल से यह पत्र नहीं लिखा है! इतना कठोर मत बनो सुजान की तरह! इस अभागे घनानंद के आँसुओं से उठे बादलों को कभी अपने मन-आँगन में बरसने दो! तुम्हें पता चल जाएगा कि तुम मुझे प्रेम करती हो कि नहीं? हाँ इस पत्र को जला देना!मोबाइल के इस युग में तुम्हारा पत्र लिखना मुझे यूँ भी हैरान करता है, तुमसे एक इल्तिजा और है सुपर्णा के लिए ऐसी ओछी बातें कभी नहीं कहना, मेरी तरह उसके मन की मुरली की आवाज किसी कदंब पर आज भी गूँजती है, प्रेम में सब हासिल हो जरूरी नहीं! इन पंक्तियो को सिर्फ अपना निवेदन रखने दो-
तुमने भुला दिया
फिर भी तुम्हारे कुशल-क्षेम के बारे में सेचता हूँ।
पहाड़ की तरफ जब जाती है हवा
तो कहता हूँ कोई संदेश लाना
पक्षी जब उड़ते हैं उस दिशा में
तो हसरत से देखता हूँ
और बादल जब घिरते हैं मन के आकाश में
कल्पना से इन्द्रधनुष बनाता हूँ।
इस बार
आम, लीची
और फूलों के बौर में
तुम्हें देखूँगा!
संजय कुमार सिंह,
प्रिंसिपल पूर्णिय महिला काॅलेज पूर्णिया854301
रचनात्मक उपलब्धियाँ-
हंस, कथादेश, वागर्थ, आजकल, पाखी,परिकथा,लहक, वर्त्तमान साहित्य, समय सुरभि अनंत, सृजन सरोकार, सरोकार,एक और अंतरीप, संवेद,संवदिया,स्पर्श,नव किरण,मुक्तांचल,हिमतरु,नई धारा,साहित्य यात्रा,जन तरंग, वस्तुत:,पश्यंती,वेणु,अभिनव इमरोज,समकालीन अभिव्यक्ति,बया,प्राची,हस्ताक्षर,गगनांचल, नया, नवल, अक्षरा,अनामिका,साहित्यनामा,परती पलार,उद्घोष,अर्यसंदेश,परिंदे,पुरवाई,पलप्रतिपल,दोआबा,सोच-विचार,कथाक्रम,अक्षरा,अनामिका,साहित्ययात्रा,विपाशा,विश्वगाथा ,कथाबिंब,साहित्यनामा किस्सा,साखी,नया साहित्य निबंध,अहा जिन्दगी,नवनीत, ककसाड़, किस्सा कोताह, साखी, कहन, कला, किताब, दैनिक हिन्दुस्तान, प्रभात खबर, आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
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