तुम्हारे ‘हिज्र का सदमा…
तुम्हारे ‘हिज्र का सदमा बड़ा ‘निराला है।
ग़म – ए- जहाँ ‘से इसी ने हमें ‘निकाला है।
उसी के नूर से रोशन है अन्जुमन दिल की।
तुम्हारी याद का सीने में जो उजाला है।
वतन के वास्ते जिसने मिटा दिया ख़ुद को।
उसी का काम ज़माने में सबसे आला है।
कहाँ ‘है क़द्र किसी बेहुनर की ऐ लोगो।
हुनर है जिसपे वो बेशक नसीब वाला है।
जहाँ ‘में कौन है पुरसाँ भला ग़रीबों ‘का।
जिधर भी देखिए दौलत का बोलबाला है।
तिरे फ़िराक़ में जान ए अदा बताऊँ ‘क्या।
न’ पूछ कितनी मशक्कत से दिल सँभाला है।
अलम जो शाने पे सच’का उठाए फिरता था।
फ़राज़’ उसकी ज़ुबाँ पर भी आज ताला है।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़
मुरादाबाद उ.प्र.