सन्डे की चकल्लस (भाग-4)
रायपुर के कंकाली मन्दिर और कंकाली तालाब का भी अद्भुत इतिहास रहा है। तेरहवीं सदी से पहले और बाद तक इस तालाब के आसपास शवों का अंतिम संस्कार किया जाता था। साथ ही अस्थियों को तालाब में ही विसर्जित की जाती थी। तेरहवीं सदी में इस जगह पर दक्षिण भारत के नागा साधु यहां आकर मंत्र के साथ ही तंत्र साधना करने लगे। उन साधुओं ने वहां जीवित समाधि भी ली। उनकी समाधियां आज भी कंकाली मठ में मौजूद हैं। उनके ऊपर एक एक शिवलिंग स्थापित हैं। इसके बाद यह मठ के रूप में स्थापित हो गया।
लगभग चार सौ साल बाद सत्रहवीं सदी में कृपालु गिरी इस मठ के प्रथम महंत बनाए गए। उनके बाद उनके शिष्य भभुता गिरी फिर उनके शिष्य शंकर गिरी महंत बनाए गए। ये सभी महंत नागा परम्परा के साधु थे। समय को देखते हुए तथा आसपास बसी आबादी के मद्देनजर महंत शंकर गिरी ने नागा परम्परा को समाप्त करने के साथ ही अपने शिष्य सोमार गिरी को गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने की भी अनुमति दी। सोमार गिरी निसंतान थे। उन्होंने अपने शिष्य शम्भू गिरी को शिष्य बनाया। उनके बाद रामेश्वर गिरी, गजेंद्र गिरी, हरभूषण गिरी महंत बने।
कृपालु गिरी के समय ही कंकाली माता का मंदिर बनाया गया। मूर्ति हरियाणा से मंगाकर स्थापित की गई। कहते हैं कि माता ने कन्या का रूप धरकर कृपालु गिरी को दर्शन दिया था। किंतु कृपालु गिरी ने उनका उपहास उड़ा दिया। जब उन्हें गलती का अहसास हुआ तो पश्चाताप स्वरूप कंकाली मन्दिर के बगल में ही जीवित समाधि ले ली। कंकाली मन्दिर में नियमित पूजा पाठ होती है। किंतु कंकाली मठ को साल में एक ही दिन दशहरे के दिन दिनभर के लिए खोला जाता है। उस दिन नागा साधुओं के शस्त्रों की भी पूजा की जाती है। कंकाली मन्दिर की स्थापना से लेकर साल 1976 तक यहां बकरे की बलि देने का भी रिवाज था। जिसे बन्दकर नारियल फोड़ने की परंपरा शुरू की गई।
कंकाली तालाब की साल 1918 फिर साल 1965 और साल 2002 में सफाई भी करायी गई।सफाई के दौरान यहां अमीन पारा की ओर जाने वाला मार्ग पर 4 फुट चौड़ा और 8 फीट ऊंचा सुरंग भी देखा गया। इस सुरंग का दूसरा हिस्सा बूढ़ेश्वर मन्दिर के पास एक नाले के निर्माण के समय भी देखा गया है। कंकाली तालाब के पानी में फास्फोरस अधिक मात्रा में पायी जाती है। इतना फास्फोरस रायपुर के किसी भी तालाब में नहीं पाया जाता। कुछ लोगों का कहना है कि इस तालाब में इतनी अधिक अस्थियां विसर्जित की गईं कि तालाब के पानी में फास्फोरस और सल्फर की मात्रा बढ़ गई। किन्तु इस तालाब की तीन तीन बार सफाई भी की जा चुकी है तो अस्थियों की भी सफाई हो गई होगी। बहरहाल मामला जो भी हो फोड़े, फुंसी, खुजली आदि के मरीज इस तालाब में आकर स्वस्थ भी होते देखे गए हैं। श्रद्धालु इसे माता की महिमा मानते हैं।
(संकलनकर्ता – अजय कुमार वर्मा)
(क्रमशः)