November 22, 2024

बरसे बादरिया झूम-झूम ,
हरसे हियरा छाये उमंग ।
धरती गाये गीत पवन संग,
चहकें चिड़िया अति प्रसन्न।
सब ओर मुदित जीवन अपार,
सब खेत, बाग,वन नाच.रहे ।
हर्षोल्लास की वेला आई ,
नदिया ,तालाब सब नाच रहे ।
मनमयूर हर्षित अपार,
बादरिया संग नाच रहा ।
अम्बर की खुशी है छलक पड़ी,
वसुधा मन ही मन मुस्काय रही ।
हरित चुनरिया रही सम्भाल ,
बरसे बादरिया झूम-झूम ।
मन नाच रहा हो मुदित अपार,
स्वागत में पलक है रहा बिछाय ।
बिन बादरिया जग है सूना ,
जग बादरिया का रिश्ता महान ।
है किसान की मीत बदरिया ,
धरती के हृदय की धड़कन ।
खेत, बाग ,वन की श्रृंगार ,
बरसे बादरिया झूम-झूम ।
घन गरज रहे काले-काले ,
चमके बिजली इतराइ फिरे ।
नाचे मयूर ,मदमस्त पवन,
सब जग मिल गाये सप्त राग ।
भइ मुदित धरा,अतुलित अपार,
बरसे बादरिया झूम -झूम ।

स्वरचित रचना–
डॉ. सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली

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