November 23, 2024

भूख के मनोविज्ञान का
एक जरूरी पाठ है
भात

बाऊग , ब्यासी ,निराई , गुड़ाई से लेकर
क्वाँर की प्रखर धूप में
बालियों के भीतर दूध के पोठाने
खलिहान आते, मिंजाते
कई शक्लों में ढलते
धान की अन्न बनने की प्रक्रिया
कम नहीं किसी संघर्ष गाथा से

छानी से उठते धुएँ में दर्ज है उसकी दास्तान
खदबदाते अदहन ,
सुलगती अँतड़ियो के बीच
उसकी महक से खुल जाती है
घर भर की भूख

चूल्हों पर चढ़कर समिधा के साथ
भोजन यज्ञ में स्वाहा का उद्घोष
बन जाता है भात
जिसकी उर्जा और ताप से होता
नवजीवन का भीतर संचार

सतीश कुमार सिंह

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