लहू से लाल!
लाल पत्थरों का देश
मेरा मादरेवतन….
दहशतगर्दी के दहकते अंगारों से झुलसती धरती पर
सब्ज़-ख़याल!
ख़याली तो नहीं हैं महज़ फिर भी
उम्मीदें रूहानी हैं
बमों के धमाके
क्या सचमुच ख़त्म कर देंगे इन्हें!!
ज़िंदगी तू है तो कहीं!
काबुल से मज़ार-ए-शरीफ़ का रुख़ करते हुए
करीम दाद की पहाड़ियों पर खड़े हो
अलस्सबाह…
लाल सूरज को निहारते
हेरात की धड़कनें सुन रही हूँ!!
सौंदर्या नसीम
अफगानिस्तान