एक ताज़ा तरीन ग़ज़ल हालात ए हाज़िरा पर आप सब की पेश ए ख़िदमत है मुलाहिजा़ हो
छुपा है क्या इरादा अब तुम्हारा साफ़ दिखता है
मनाओ जश्न अच्छे दिन हैं आए मुल्क बिकता है
लगी है सेल जिसको जो लगे बेभाव ले जाओ
अजी लालच के आगे कब तलक़ ईमान टिकता है
अमानत मुल्क की ज़ाती मिल्कियत बनने वाली है
सियासत ये तेरा चेहरा बहुत बेहूदा दिखता है
कभी पूछे कोई कुछ तो उसे गद्दार बतलाओ
ये जुमला तो हमेशा रोटियों की तरह सिकता है
बताओ मुल्क़ को ख़तरा,मज़हबी रंग में ढालो
अरे अब ढोंग ये जनता को बिल्कुल साफ़ दिखता है
बुरी आदत है लेकिन जानने की मुझको चाहत है
कि जुमला कौनसा अब जानिबे साहिब से फिंकता है
मनस्वी अपर्णा