उथल-पुथल है जहां में…
उथल-पुथल है जहां में, जिन्दगी घबरा रही है|
हकीकत से रूबरू हो, सुनामी आ रही है ||
कुछ कमी-कमी सी है, बुझा-बुझा दिख रहा है |
अरे चांद को तो देखो, हर वक्त कट रहा है ||
हुकूमतें हैं घुटनों पर, बस एड़ी रगड़ रहीं हैं|
करोना के एक झटके से, हवाएँ मचल रहीं हैं ||
जिन्दगी में क्या जरूरी था, और तुमने क्या दिया?
चन्द रोज़ की बंदिशों ने, आइना दिखा दिया ||
एहसान फरामोशों को, सजा पाना जरूरी है |
कुदरत की रहमतों पर, सिर झुकाना जरूरी है ||
सुप्रभात
डॉ प्रेमकुमार पाण्डेय
केन्द्रीय विद्यालय बीएमवाय चरोदा भिलाई
9826561819