November 16, 2024

निर्माता और विनाशक : राष्ट्रीय संग्रहालय की कहानी

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शुभनीत कौशिक

मई 1955 में ली गई इस तस्वीर में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय संग्रहालय की आधारशिला रख रहे हैं। राष्ट्रीय संग्रहालय, जिसे बक़ौल नेहरू भारत की राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बनना था। जिसे हिंदुस्तान के इतिहास, कला और संस्कृति का एक उत्कृष्ट संग्रह होना था। ठीक 66 सालों बाद, वह राष्ट्रीय संग्रहालय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्वग्रासी परियोजना ‘सेंट्रल विस्टा’ के लिए राष्ट्रीय अभिलेखागार, शास्त्री भवन, विज्ञान भवन आदि के साथ कुर्बान किया जा रहा है।

विनाश के इस क्षण में सृजन के क्षण की याद आना स्वाभाविक ही है और उस भाषण की भी जो 12 मई 1955 को राष्ट्रीय संग्रहालय का शिलान्यास करते हुए नेहरू ने दिया था। नेहरू ने कहा था कि संग्रहालय आम लोगों के लिए होने चाहिए और सिर्फ़ दिल्ली ही नहीं हिंदुस्तान के सभी बड़े शहरों में संग्रहालय बनने चाहिए। नेहरू का मानना था कि ‘संग्रहालयों के बगैर हमारी शिक्षा अधूरी है।’

नेहरू ने संग्रहालय के लिए ‘अजायबघर’ शब्द न इस्तेमाल करने के संदर्भ में कहा कि ‘अजायबघर से जादू का भान होता है। हम म्यूज़ियम जादू देखने नहीं जाते बल्कि यह देखने के लिए जाते हैं कि मानव दिमाग ने कितनी तरक़्क़ी की है। बल्कि यह कहना ठीक होगा कि म्यूज़ियम इंसान की तरक़्क़ी की कहानी कहते हैं।’

नेहरू का सुझाव था कि संग्रहालय अतीत की खूबसूरत और अमूल्य वस्तुओं का संग्रह भर नहीं हो। बल्कि उसे तो ऐसा होना चाहिए कि हमारे स्कूली बच्चे इंसानी समाज की तरक़्क़ी के तमाम इदारों और पड़ावों से वाकिफ़ हो सकें। वह ज्ञानार्जन का ऐसा केंद्र हो, जिससे स्कूली बच्चे और आमजन राष्ट्र के इतिहास में आने वाले विविध उतार-चढ़ावों से वाबस्ता हो सकें। संग्रहालयों की पहुँच के विस्तार के संदर्भ में नेहरू ने कहा था कि संग्रहालय को महज शोधार्थियों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे लाखों आम लोगों की पहुँच में होना चाहिए। तभी वह अपना उद्देश्य पूरा कर सकेगा।

मार्के की बात है कि नेहरू ने यह भी ज़ोर देकर कहा कि हमें ऐतिहासिक स्मारकों को उनकी मूल जगह से हटाने की बजाय उन्हें उनकी प्राकृतिक अवस्थिति में देखने जाने का आनंद उठाना चाहिए। ऐतिहासिक महत्त्व की वस्तुओं, कलाकृतियों के संग्रह के साथ-साथ नेहरू ने संग्रहालय में उनकी प्रस्तुति के तरीक़े पर भी बल दिया। इसी क्रम में नेहरू ने लंदन स्थित ‘साउथ केनसिंगटन म्यूज़ियम ऑफ नैचरल हिस्ट्री’ व ब्रिटिश म्यूज़ियम और म्यूनिख़ स्थित ड्यूश म्यूज़ियम का भी उदाहरण दिया। नेहरू ने विश्व भर के उदाहरणों से सीख लेने की बात कही और जोड़ा कि ‘संग्रहालय ऐसा हो जहाँ संग्रहित वस्तुएँ अपने जीवंत रूप में हमारे सामने आएँ और हम मानव इतिहास की प्रगति के साक्षी बन सकें।’

नेहरू ने आगे चलकर ऐसे मानव-संग्रहालयों की स्थापना की भी बात कही, जिसमें विश्व इतिहास के परिप्रेक्ष्य में मानव समाज की प्रगति यात्रा दर्शाई जानी थी। नेहरू के अनुसार, संग्रहालय पुरानी वस्तुओं की दुकान नहीं होते, बल्कि वे तो इसलिए होते हैं कि हम ख़ुद को और अपने संसार को बेहतर समझ सकें। यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अहं की तुष्टि के लिए भारत की राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीक इस संग्रहालय की बलि दी जा रही है।

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