जसिंता केरकेट्टा की एक जबरदस्त कविता : जो तुम्हारा है वह स्टेशन पर खड़ा है
मैं हमेशा सफ़र पर होती
और वह हमेशा स्टेशन पर
आधी रात, भोर या दिन-दोपहर
हर बार वह मिलता मुझे स्टेशन पर…
मेरा इंतज़ार करता हुआ
शायद बिना कुछ कहे चुपचाप
इसी तरह मुझसे प्यार करता हुआ
मुझे लगता मेरा प्यार कहीं दूर है
कभी न कभी उस तक पहुंचना ज़रूर है
और मैं हमेशा उस तरफ़ भागती
वह मेरा सामान ढोकर
कभी छोड़ने के लिए, कभी लेने के लिए
खड़ा रहता अक्सर उसी स्टेशन पर…
मैंने अपनी चाहतों के सारे किस्से
सिर्फ़ उससे ही साझा किए
वह किसी स्त्री की तरह
सारे किस्से अपनी गांठ में रखता
जो कभी भी नहीं खुलते
वह हमेशा चुप रहता
बस साथ-साथ चलता
जैसे चलता हो कोई साथी या सहयात्री
मैं पूछती उससे
कैसे पता चलता है
कि कोई सचमुच प्यार करता है?
वह कहता
असल प्रेम में जब कोई होता है
वह मां की तरह हो जाता है
एक दिन मैंने मां से भी पूछा
कैसे पता चलता है
कि कोई सचमुच प्यार करता है?
मां ने कहा
प्रेम कहां कुछ मांगता है ?
वह तो सिर्फ़ परवाह करता है
तुम जहां उसे छोड़ कर जाती हो
वह सालों से वहीं तो रुका है
प्रेम तक पहुंचने के लिए ट्रेन की क्या ज़रूरत?
जो तुम्हारा है वह स्टेशन पर खड़ा है।