दिव्या सक्सेना की दो कविताएं
भावों की गहनता में
भावों की गहनता में
कोई इतना डूब जाए
और लिख दे उन्हें
कलम उठाकर पन्नों पर
जब वो लिखते लिखते खोने लगे
ख्यालों में यादों में
जैसे नदी बहती है धरा पर
विचारों के कई घाटों से गुजरते हुए
मिलने को अंतिम पड़ाव पर
अपने सागर से
उस क्षण जब लिखते लिखते
यदि प्रतिक्रिया होने लगे
और
छलक आऐं आंसू आंखों से
दिखने लगे अलौकिक तेज मुख पर
या सुंदर सी मुस्कुराहट प्रकट हो जाए
अनायास ही लिखते लिखते
तब समझ लेना कि भावों ने
अपने चरम को छू लिया हैं।।
————-
संगम
चट्टान रुपी विषम परिस्थितीयों से टक्कर लेते लेते
गंगा की भाँति बहकर
जब जिंदगी गुज़रती रही
लंबा सफर तय करते करते
तब समां गए भाव सारें
यमुना की भाँती
एक रोज़ जिम्मेंदारीयों में सिमट कर
प्रेम के संगम तट तक पहुँचते पहुँचते
अंतर्मन ऐसे ढला एक रंग में
की मैं खुद से मिली तो
मगर सरस्वती की भाँती
विलीन होकर खो गई कहीं।
दिव्या सक्सेना
कलम वाली दीदी
सिकंदर कम्पू लश्कर
ग्वालियर(म.प्र)474001