पतझड़ का प्यार
जब तय करेंगे बसंत से पतझड़ का सफर हमतुम,
तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।
जब संताने जा बसेगीं अपने अपने घोसलों में,
रह जाएंगे हम तुम..
तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।
जब मेरी पीड़ा बन जाए तुम्हारी पीड़ा,
तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।
जब आदि हो चुके होंगे हम. …
एक दूसरे की अच्छी बुरी आदतों के,
तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।
जब बना न पाऊँं वेणी दुखते हो मेरे हाथ
संँवार कर मेरे बालों को
जता देना प्रेम. ..
और तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।
जब लड़खड़ा जाऊंँ चलते चलते,
संभाल लेना तुम
कांँधे का सहारा दे।
बांँध लेना आलिंगन में और तब करना तुम प्रेम
सर्वाधिक।
यादों के झरोखों में झांँकते …जब लड़ते झगड़ते मिलेंगे हम…
मुस्कुराकर किसी बात पर.. यूहीं…
तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।
निमिषा सिंघल
आगरा (उत्तर प्रदेश)
चित्र: निमिषा सिंघल