एक नई रस्म
एक नई रस्म बनाते है
बेटी की जगह बेटों को विदा कराते है
बेटों की मांग भराई करते है
दहेज लेने की मांग पर
अब बेटी वाले अड़ जाते है
अब लड़के वाले रख के देखे अपनी पगड़ी
लड़की के बाप से लात मार फिकवाते है
एक नई रस्म बनाते है ।
लाके घर इन बेटों को
इनपे तानों की बौछार करवाते है
सोफा ,फ्रिज ,टीवी तो ठीक है
पर कार के लिए इन्हें मायके भिजवाते है
बात बात में थप्पड़ ,अपमान
ये सब इनको भी बतलाते है
एक नई रस्म बनाते है ।
छुड़वा कर नौकरी इनकी
इनसे झाड़ू ,पोछा कपड़े धुलवाते है
अब लड़की नही इन
लड़को के नाम पे नया सरनेम लगाते है
सुहागन होने के सारे एहसास
सिंदूर ,बिंदी और मंगलसूत्र
इन लड़को को पहनाते है
एक नई रस्म बनाते है ।
ये घर उसका नही ,वो घर भी उसका नही
ये उनको भी समझाते है
घूंघट के अंदर कैसे रहते है
उनको भी बतलाते है
खाना ,बर्तन ,बच्चे अब
यही उनसे करवाते है
है औरत सबसे श्रेष्ठ
ये साबित कर जाते है
चलो ना एक नई रस्म बनाते है ।
“मीनाक्षी पाठक”©️®️