November 18, 2024

हर ओर से खारिज, खत न समझ…

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हर ओर से खारिज, खत न समझ
मैं नींव हूं घर की,छत न समझ
*
लिखने की सजा पायी है बहुत
लिखता हूं बहुत,पर लत न समझ
*
बिखरा हूं, बहुत भीतर-भीतर
टूटा हूं मुझे अक्षत न समझ
*
चेहरे की सियाही पर मत जा
मै खुश हूं बहुत, दहशत न समझ
*
पिघलेगी यक़ीनन ,पिघलेगी
हर पीर को तू,परवत न समझ
*
अल्लाह ने दी है तोहफे में
बदलेगी कभी फितरत,न समझ
*
ले जा! जो तुझे ले जाना है
हर चीज की तू कीमत न समझ
*
गुत्थी है बहुत ज्यादा उलझी
सुलझेगी इसे गफलत न समझ
*
कुछ देर को जाना है मुझको
हैरान न हो,फुरकत न समझ
*
आवाज में ऊंची डूब गया
है शोर, इसे जनमत न समझ
*
@ राकेश अचल

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