गीतकार श्री हरि ठाकुर जी के रचना –
आज (03 दिसम्बर) छत्तीसगढ़ के स्वंत्रता संग्राम सेनानी, इतिहासविद्, कवि, गीतकार, साहित्यकार, पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के प्रणेता श्री हरि ठाकुर जी की पुण्यतिथि पर “छन्द के छ परिवार” उनका पुण्य स्मरण करते हुए अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करती है। छत्तीसगढ़ी फ़िल्म “घरद्वार” में उनके लिए सभी गीत आज भी प्रेमभाव व सम्मान से सुने जाते हैं। हरि ठाकुर जी की एक छत्तीसगढ़ी रचना प्रस्तुत है जिसमें उनके मूल तेवर अलग से पहचाने जा सकते हैं –
गीतकार श्री हरि ठाकुर जी के रचना –
लोटा धरके आने वाला इहां टेकाथें बंगला।
जांगर टोर कमाने वाला है कंगला के कंगला।
देखत आवत हन शासन के शोसन के रंग ढंग ला।
राहत मा भुलवारत रहिथे छत्तीसगढ़ के मनला।
हमरे भुंइया ला लूटत हें, खनथें हमर खनिज ला।
भरथे अपन तिजोरी, हरथें हमर अमोल बनिज ला।
चोरा चोरा के हवै ढोहारत छत्तीसगढ़ के वन ला।
लोटा धरके आने वाला इहां टेकाथें बंगला।
लाठी गोली अउर बूट से लोकतंत्र चलवाथें।
अइसन अफसर छांट छांट के छत्तीसगढ़ मा लाथें।
नेता मन सहराथें अइसन शासन के हुड़दंग ला।
लोटा धरके आने वाला इहां टेकाथें बंगला।
छत्तीसगढ़ मा भुखमरी बेकारी छाये रहिथे।
नेता अफसर येही ला आजादी आये कहिथे।
लूटत हे उद्योगपति सब छत्तीसगढ़ के घन ला।
लोटा धरके आने वाला इहां टेकाथें बंगला।
जेती देखो छत्तीसगढ़ के होवत हे बरबादी।
अइसन घोर गुलामी के उन नाम घरे आजादी।
आँखी हमरे उपर गुरेरैं, खाके हमरे अन ला।
लोटा धरके आने वाला इहां टेकाथें बंगला।
– श्री हरि ठाकुर